प्रकाश | Prakash

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Prakash  by गोविन्ददास - Govinddas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृश्य पहला अक { १५ विरवनाथ लगभग पचपन वषं का, दुनेला-पतला, ठ्गिना, गेह रंग का 'सनुप्य है । सफ़ेद मू छें हू, बालाबरदार सफ़ेद प्रेंग रखा शौर- सादा, सफ़ेद पायजासा पहुने है । गले में सफेद दुपट्टा है भ्रौर सिर पर उसी रंग का साफा । सब कपड़े खादी के है । सादे हिन्दुस्थानी जूते हैं । मस्तक पर सफेद चन्दन को टिंकली है । शहीदनरुदा लगभग चालीस वर्ष का साँवला, ऊंचा-पुरा श्ौर मोटा आदमी है । ख़िंजाब की हुई काली छोटी-छोरी मुछें श्रौर दाढी है । काली शेरवानी, उस पर काला चोगा शभौर ढीला सफेद पायजासा पहनें है । सिर पर तुर्की टोपी श्रौर पैरो मे श्रगरेली जते हे । शेरवानी में ची के सीना क्रिये हुए बदन लगे है । भगवानदास लग भय पसर चषं का सांवल रंग का बहुत सोटा श्रौर ह्गिना मनुष्य है । नड़ी-वड़ी सफेद मू छ हे । मस्तक पर रामानन्दी मोटा तिलक है । सफेद झंगरखा श्रौर पायजामा पहने है । गले में जरी का सफेद दुपट्टा श्रौर « सिर पर गोल पड़ी है । पैरो में देशी जूते है । मोती की दो- लड़ की कंठी, हाथों में सोने के कड़े कौर कानों में सोने की मुरकियाँ पहने है । मुरकियों के भार से कानों के छेद बहुत लम्बे हो गये हे ए] दासोदरदास : (विश्वनाथ से) किए, पण्डितजी, हिन्दू-सभा का.काम कंसा चल रहा है ? (सिगरेट कौ राख ततरो ें झाड़ता है 1) विर्वनथ : साधारणतया ठीक ही चस रहा है, गुप्ता साहब । श्राप जानते ही है कि ्राजकल हर काम में शिथिलता है । धनपाल ; (यह भी ध्रव सिगरेट पी रहा है) मुभे तो इस वात




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