विनोबा के पत्र | Vinoba Ke Patra

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Vinoba Ke Patra  by जमनालाल वायती - Jamanalal Vayati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जमनालाल बजाज के नाम १५ लेखन-वाचन १1 घटा पत्र-व्यवहार १। घटा /+ ४ घटें व्यान-चितनं १ घटा अव्यापन ६ घटा न्न्६्घटें कुल ३० घटें भगवान ने २४ घटे दिये, उसके चरखे ने ३० किये । विनोबा के प्रणाम ११ सवानगी भिवापुर, ५-१२-३५ श्री जमनालालजी, श्री पोतनीस के साथ अनेक विपयों पर वहुत वाते की । मुख्य वात विवाह्‌ के वारे मे उनकी मनोभूमिका जान लेना गौर उस सवघ मे अपने विचार सूचित करना था 1 विवाह्‌-सवधी चर्चा का जो निप्कयं निकला वह उन्होंने मुझे लिखकर दिया हैं । उसकी नकल साथ में हू ।* उनके साथ वात करते हुए किसी भी व्यक्ति का उल्लेख मैने नहीं किया । लडकी के माता-पिता के विचार जाने वरगर इस प्रकार से उल्लेख करना मुझे ठीक नही लगा । अव लडकी के पिता को पोतनीस के विचारों की नकल भेज दगा । मापको पोतनीस के सायं का सवव उत्तम लगता है, यह आपने मुझसे पहले ही कह दिया हैं । आपकी भी सम्मति उसके साय सूचित करूंगा । सम्मति भा जायगी तो फिर पोतनीस से पूछा जा सकेगा । ऐसे सवालों के सबब में पहले से ही किसीके साथ चर्चा करना मुझे नापसद हैं । इसलिए मेरा यह पत्र व्यक्तिगत समझा जाय । आपकी जान- कारी के लिए छिखा है । साथ के पत्र के अक १ की भाषा कुछ कठिन है । किन्तु जिस परिभाषा मे चर्चा हुई उसी परिभाषा मे वह लिखा हैं । विनोवा के प्रणाम १ श्री पोत्तनीस का पत्र नीचे लिखे अनुसार है-- पुज्य विनोवाजी, (१) विवाह के वारे मं मेरी मनोवृत्ति तटस्य रही तौ अपरिनिष्ठिट




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