ब्रह्मसूत्र शंकरभाष्य रत्रप्रभा | Brahmasutra Shankrabhashya Ratrprabha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
774
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ११
विपय पष्ठ परुक्ति
वेय एकदै, तो भी सगुण वियाक्रा येद् मानना चाहिए [सिद्धान्त] २१३३ - ८
शब्दके मेदसे विदययाका सेद् क्यों माना जाता है ? ४६; २१३४ - ५
विकल्पाधिकरण ३।२।३४।५९ [ ए० २ ४२,
२ ध्वे अपिकरणका सार $ ७ 4 २१३८ - ६
मू्र--विकल्पोऽविदि्टफलत्वात्. ३।३।३४८।५९ =. कश २१३९ - १
विद्याओंका समुचय र [पवेपत्त] ४ ,.. २१३९-८
वरियाओंका समुचय नदीं हे, परन्तु विकर हं [सिद्धान्त] ... २१९४० - १०
काम्याधिकरण २।२।३५।९० [ प्र° २१४२--२१४४ |
३५ अधिकरणफा सार ... 0 ... २१४२ - १७
सूत्र--काम्यास्तु ययाकामम्० ३।३।२५।९० ह | २१४२ - १
प्रतीक उपासनाओंमं यथेष्ट विकरप या समुचय ६ ,., २१४३ - १२
यथाश्रयभावाधिकरण २।२।२६।६१-६६ [ प° २१४५ --२१५४ |
३६वें अधिकरणका सर 44 क ४ २१४५ - ६
सुन्न--अभेपु यथाश्रयभावः ३1३1३ ६1६३१ व ५ २१४५ - १२
कमोद्ध उद्रीयमें आधित उपासना समुचयसे होती दै ... २१४६-२
सूत्र--रिष्टेथ ३।३।३६।९२ « 94 २१४५ ~ १
स्तोत्रके समान आश्रित उपासनाएँ तीनों वेदोंगें दोती हैं. ... २१४७ - ७
सूत्र-~-समादटायत् ३।३।३६1६ ३ न मत २१४८ - )
होव्रपदनाद्धेवः श्त्यादिस भी उक्त उपासना्ओंका समुश्चेय ज्ञात
होता ,,, + .. २१४८-७
सन्र--सुणतसाधारण्यश्रतश्च ३।३।३ ६।६४ ध २१४९ - १६
तेनेयं चयी विद्याः इत्यादिसे तीनों बेदोमें साधारणतया ओंकारका
श्रवण है ,,, 2 ... २१४९ - २५
सूच ~~न वा तत्सद् भावाश्रतः २।३।२३६।६५ - +, २१५१ ~ १
आश्रित उपासनाओंका समुचय नहीं होता दै [ सिद्धान्त ] २१५१ - १२
सूत्र--दशन्व ३।३।३६।६६ „.. (8 २१५३ - १९
उपासना्मोका अखहभाव भ्रति दिखलाती है ;,. -२१५४ - १
तृतीय भध्यायके चतुथपाद्का प्रारम्भ क कः २१५५ ~ १
पुरपथषिकरण ३।४।१।१-१४ [ प० २१५५-- २१८३ |
{म भयिकरणका सार कः ,. मी १५५ - ८
सृत्र--गुसपाथाऽतः शब्दादिति चाद्रायण: ३।४।१।१ ।. ,«,.. '.. २१५६-१
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