जैन तत्त्व मीमांसा की समीक्षा | Jain Tattv Mimansa Ki Samiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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नि का 'देशफपणा है थना ते -उववहीस्करि पेते
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टी फा-यहा रात दारकररि कहे हें । जे. पुरुष अन्त के” पाक
'करि उतर्या जो रु सुचररप तिहर स्थानीय जो घस का. उक्ष
'रासाधारण भाव , निनिकू', 'अलुभवे ,हैं, तिथिके , प्रंशम ' द्वितीय
-श्रादि व्यचेफ पाक फी परपरा करि पच्यमान जो छाशुद्ध, वरं
तिन स्यानिय जो अनुक्छष्र॒ मध्यम'भाव तिस अयव क
शदरपणाते , शुद्ध द्रव्य का प्मादेशी पणा करि-प्राट किया ह ध्यच-
लिन श्र्गड एफ स्वसाव रूप एक भाव जाने , ऐसा शुद्ध नय-है
सोदरी उपरि ही उपरि कां एम ्रतिवर्शिका स्थानीयपुण्से
जान्या हुक म्रयोजनवान द । दृदुरि जे; केदं पुरुष प्रयसःितौय,
सादि छनेकृ, पाक की, परपरा, -करि;. पच्यमान. करि लो,
न्वी सुत्रणं . पिसस्थःचीय जो चर्तु का श्रलुत्कृष्ट मध्यम -भाव
ताक श्मनुमवें है, . तिनिके अन्त के पाक .कारि ही उतरया जो शुद्ध
सुवरगं तिन स्थानीय व्ष्तु का, उत्छष्ट . भाव ताक. अभव, क्रि
शून्य पणाते अशुद्ध द्रव्य का, आदेशी पणाकरि, ,दिखाया- दै- न्यास
स्यारा एक भाव रवरूप नेक भाव ज़ानि ऐसा_इयवहार् 'नय है।
सोदी- विचित्र नेक ञे वणंमाला तिस स्थानीयपणंत्ति जन्यौ
श्या तिस काल भयोजनलान् दै ,] जाते तीथ.अर सी तीर्थ का फुल
इनि दोडनिका ऐसा - दी .यवस्थित, पनां दे । तीथें. जा कद
कृतरिप ऐसा तो व्यवहार थर्सें ार ज्ञो पार,होना सी, स्वहा
-धर्मः का फल, अपना स्वरूप का._पाव्रना सो तीथ. फल. । श
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पक्कणं विणा चिञजर तित्थं; अय्णेण उण-त्र्द |
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