आचाराङ्ग के सूक्त | Aacharang Ke Sukt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ९१ श्रात्म-निग्रह्‌। प्रयमं भरुतस्कंधमे मुनियों के यम-नियमों का उल्लेख नहीं है पर वहाँ व्यापक घर्म-भावना और जीवन-व्यापी समग्र संयम के सुत्र हैं। इस श्रष्ययन में गम्भीर तत्वचिंतन एवं साधक मुनि की साघना के मौलिक सूत्र हूं । प्रथम श्रुतस्कन्ध कै ग्रष्ययनों का विषय संक्षेपमें इस प्रकार है १--रास्त्रपरिज्ञा : इसमें जीवों के प्रति संयम का उपदेश है। जेन घर्म में छः प्रकार के जीव माने गये हैं। इन जीवों की हिसा के परिहार का उपदेश इस श्रष्ययन में है । २--लोकविजय : इस श्रघ्ययन मे भाव लोक के विजय की बात राई है । जिनसे लोक--कर्म--का वन्ध होता है उन कषायादि पर विजय का उपदेश इस श्रष्ययन में है । ३--सीतोष्णीय : इसमें सुख-दुःख मेँ तितिश्ना भाव रखने का उपदेश दै । ४- सम्यक्त्व : इसमें सत्य मेँ दढ श्रद्धा रखने का उपदेशःहै । ५--लोकसार : इसमें लोक में सार क्या है इसका वर्णन है । इस अध्ययन का नाम श्रावंति* भी मिलता है । ६--धुत ; इसमे निसंशता का उपदेश है । १--समनायाङ्ध सू° &




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