आचाराङ्ग के सूक्त | Aacharang Ke Sukt
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ९१
श्रात्म-निग्रह्। प्रयमं भरुतस्कंधमे मुनियों के यम-नियमों का
उल्लेख नहीं है पर वहाँ व्यापक घर्म-भावना और जीवन-व्यापी समग्र
संयम के सुत्र हैं। इस श्रष्ययन में गम्भीर तत्वचिंतन एवं साधक
मुनि की साघना के मौलिक सूत्र हूं ।
प्रथम श्रुतस्कन्ध कै ग्रष्ययनों का विषय संक्षेपमें इस प्रकार है
१--रास्त्रपरिज्ञा : इसमें जीवों के प्रति संयम का उपदेश
है। जेन घर्म में छः प्रकार के जीव माने गये हैं। इन जीवों की
हिसा के परिहार का उपदेश इस श्रष्ययन में है ।
२--लोकविजय : इस श्रघ्ययन मे भाव लोक के विजय की बात
राई है । जिनसे लोक--कर्म--का वन्ध होता है उन कषायादि
पर विजय का उपदेश इस श्रष्ययन में है ।
३--सीतोष्णीय : इसमें सुख-दुःख मेँ तितिश्ना भाव रखने का
उपदेश दै ।
४- सम्यक्त्व : इसमें सत्य मेँ दढ श्रद्धा रखने का उपदेशःहै ।
५--लोकसार : इसमें लोक में सार क्या है इसका वर्णन है ।
इस अध्ययन का नाम श्रावंति* भी मिलता है ।
६--धुत ; इसमे निसंशता का उपदेश है ।
१--समनायाङ्ध सू° &
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