साहित्य समीक्षा | Sahity Samiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
251
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कला ६.
है। दृत्य में श्रादि, मध्य श्र श्रंत आवश्यक हैं श्र उसे पूर्ण रूप से
समन्वित दोना भी है । दम जानते हैं कि उसका प्रारम्भ श्माधार् थवा
श्सुजन है, वद्द सष्टि अथवा स्थिति में श्रभिव्यक्त होता है और श्रत में
प्रलय को प्रास दो जाता दै। जीवन की तीनों श्रवस्थाएँ चत्य की लयमान
आत्मा में एक द्ोकर पूरी हो जाती हैं । शिव का यह मद्दाकाल-दत्य काल
की शमा समाप्त कर जाता है श्रौर समस्त प्राणी उसमें भाग लेते हैं |
दता से क्रियाशौलता मे श्रौर क्रियाशीलता से फिर जड़ता में, यह
उसका क्रम है । यह चरंति चद श्रवस्था गति श्र धर्म से परे है । तन
ख्य ब्रहम मे वियमान दो जात। है श्रौर हमारी कला, दर्शन श्रौर धमं
श्रपनी -श्रपनी सीमाश्रों में इसी त्र्य की श्रनुभूति चाइते हैं ।
, «% दस प्रकार त्रिमूर्ति ने ज्ञान श्रौर कला के क्षेत्रों में भारतीय दृष्टि-
कोण के विकास को प्रभावित किया है । उसने दमारी मानवीय चेष्टाओं
को एकांगी दोने से रोक दिया है। इमारे कलाकार सत्यम्, शिवम्,
बुन्द्रम् श्रयवा ज्ञान, कम, उपासना की विभाजक रेखाग्रों को नण्ट करने
में प्रयत्नशील रहे हैं ।
संस्कृत-साहिं्य के दृश्य श्र श्रव्य-काव्य सुखांत हैं । दमारे साहित्य
फा यह् स्वभाव ऊपरी दृष्टि से देखने वाले को तो श्र भी स्पष्ट हो जाता
है | व्याख्या कहा जातां है कि संस्कत-सादिस्य की इस विशेषता, का
कारण एशिया की जातियों की रोमांटिक ( अतिरंनशील ) ग्रौर कल्पना-
शील प्रदृत्ति है । किसी हृद तक यह ठीक हो भी सक्रता है श्रौर इस
त्ति के लिए दम बहुत ऊख मूल्य चकाना भी दोगा । परंतु स्व ले-
देकर हमें इसका कारण भारतीय विचारधारा और दर्शन में दी कहीं
खोजना पड़ेगा |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...