तत्त्वार्थ सूत्र | Tatvarthsutra
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
578
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
वे सचे परपराके धे जैसा कि हमने परिचय में दरसाया हैं । हमारे
अवलोकन और विचार का निष्कर्ष संक्षेप में इस प्रकार है--
(१) भगवती आराधना मौर उसके टीकाकार अपराजित दोनो यदि
यापनीय हूं दो उनके ग्रन्थ से यापनीय संघ के आचारविषयक निम्न लक्षण
फलित हेते है--
(क ) यापनीय आचार का गौत्सभिक गंग अचेलत्व अर्थात् नर्नत्व है ।
(ख ) यापनीय संघ में मूनिकी तरह भार्यानोका भौ मोक्षरक्षी
स्थान है । और अवस्थाविकषेष मे उनके लिए भी निवेसनभाव का उपदेश है।
(य) यापनीयं बाचारर्मे पाणितल भोजन का विधान है और
कमण्डलु-पिच्छ के सिवाय गौर किसी उपकरण का ओौत्सगिक विधान
नहीं है ।
उक्त लक्षण उमास्वाति के भाष्य और प्रशमरति जैमे ग्रत्यो के वर्णन
के साथ बिलकुल मेल नही खाते क्योकि उनमें स्पष्ट रूप से मुनि के वस्त्र-
पात्र का वर्णन हूं। और कही भी नानत्व का औत्सधिक विधान मंही है ।
एवं कमण्डलु-पिच्छ जैसे उपकरण का तो नाम भी नही ।
(र) श्रीप्रेमीजी की दलोलोमें से एक यह भी है कि पुण्य
्रकृत्ति भादि विषयक उमास्वीति का मन्तव्य अपराजित की टीका में
पाया जाता है । परन्तु गच्छ तथा परपरा की तत्त्वज्ञान-विषयक मान्यताओं
का इतिहास कहता है कि कभी कभी एक हो परंपरा मे परस्पर विष्ड
दिखाई देनेवारी सामान्य गौर छोटी मान्यताएं पाई जाती है । इतना ही
चहौ बल्कि दो परस्पर विरोधो मानी जानेवारी परपरानोमे भी कभी
कभो एसी सामान्य व छोटी छोटी मान्यताबो का एकत्व पाया जाता है ।
सी दया में वस्त्रपात्र के समर्वक उमास्वाति का वसत्रपात्र के विरोधी
यापनीय सव कौ अमुक मान्यताभो के साथ साम्य पाया जाय तो इस
मे कोई जचरज की वात नहीं ।
१० फुछचनद्रजी ने तत्त्वाथं सूत्र के विवेचन को प्रस्तावना मे मृष
पिच्छ को सूचकार और उमास्वाति को भाष्यकार बताने का प्रयलं
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