जनता के तीन सिद्धान्त | Janata Ke Tin Siddhant

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Book Image : जनता के तीन सिद्धान्त  - Janata Ke Tin Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९ ) यह दिंदी श्रनुवाद मूल चीनी पुस्तक श्रौर उसके श्रंगरेजी श्रनुवाद के सहारे किया गया है। मैंने श्रनुवाद को मूल के निकट रखने का प्रयत्न किया है। इनवरटेंड कौमा के श्रंदर चीनी मुह्दावरों श्रौर कद्दावतों का ठेठ श्रनुवाद रखा है | मैने श्रनुवाद म लंने-लंबे फुटनोट जोड़ दिए है ताकि चीनी साहित्य श्रौर ईशतिदास से श्रपरिचित व्यक्ति को भी कद्दीं समभकने में कठिनाई न पड़े । चीनी शब्द नागरी श्रक्षरों में लिखे गए हैं श्रौर ऐसा करने में इस बात की कोशिश रखी गई है कि वे मूल ध्वनि के निकट रहें । बहुत जगहों पर जानुक कर॒ चीनी वाक्य-विन्यास की तरह दही श्रनुवाद किया गया है। पुस्तक पने के पदले दिंदी-भवन, शांतिनिकेतन के मेरे बंधुवर पं ० रामपूजन तिवारी एम० ए० ने गत गर्मी के दिनों में लगातार तीन मद्दीनों तक मेरे साथ बैठकर श्रनुवाद को मिलाने, संशोधन श्रौर परिवर्धन करने में श्रथक परिश्रम किया है | श्रद्धेय पंडित हजारीप्रसाद्‌ द्विवेदी जी से भी मैंने बहुत सद्दायता ली है, खासकर पारिमाषिक शब्दों के चयन में तो उन्होंने बड़ी दी मदद की है । फुटनोट तैयार करने म चीन-भवन के भूतपूव चीनी प्रोफ़ेसर श्री वु थ्याव्‌ लिड_ ( भारतीय नाम श्री दिवाकर उपाध्याय ) ग्रौर उनकी पत्नी ने काफ़ी द्ाथ बटाया है| इतना होने पर भी श्रगर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डा० माताप्रसाद गुप्त श्रौर दिदी-भवन, शांति निकेतन के मेरे मित्र श्री रामर्सिंह तोमर जी ने इसके छपवाने की व्यवस्था न कर दी होती तो पुस्तक का इतनी जल्दी निकालना सम्भव ही नहीं हो सकता । कमल कुलश्रेष्ठ ने पुस्तक जल्द छपे इसके लिए बड़ी दोड़-धूप की है श्रौर सारी पुस्तक का प्रफ़ ध्यानपूर्वक देखा है । दीक्षित प्रेस के मेनेजर श्री मगनङ्ष्ण दीक्षित ने नए टाइप में जल्द से जल्द पुस्तक छाप देने में बहुत परिश्रम किया है । इन मित्रों श्रौर शुभचिंतकों के प्रति मैं हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हू । शांति-निकेतन ७०-१२०-४६ चीन-भवन, ) कृष्णा कंकर सिह




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