मयूख | Mayukh

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Mayukh by राखालदास वंद्योपाध्याय - Rakhaldas Vandyopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) खरा भी श्रतिशयोक्ति नहीं कि पुरातस्व विभागको एेसाधुनका पका विद्धान्‌ उनके पहले दूसरा नहीं मिला था । त्रिपुरी श्रौर भूमरा के संबंध में रचित उनके शोधपग्रंथौो को देखने से भी माति पता चलता है कि वे श्रपना कार्य कितनी लगन आर परिश्रम से किया करते थे । पूना में पेशवाश्रों के राजप्रासाद की खुदाई करके उन्होंने इतिहास श्रोर पुरातत्व की श्रनेक टूटी हुई कड़ियाँ जोड़ी हैं । लेकिन उनके यश को सबसे श्रघिक बढ़ानेवाला काय मोहेंजोदड़ो काश्राविष्कार है। सन्‌ १६२२ मे पदे पटल उन्होंने इस स्थान का दौरा किया था श्रौर थोड़ी बुत खुदाई भी कराइ थी । सरकारी कोष में इस कार्य के लिये श्रपेद्चित द्रव्य की व्यवस्था उस समग्र न रहने के कारण यह काय कुछ दिनों के लिये बंद कर देना पड़ा था, लेकिन इसी श्रल्पकालीन खुदाई में उन्होंने इस प्रागैतिहासिक नगरी की विशेषताओं पर प्रकाश डालनेवाली जो सामग्री श्राविष्कृत को उससे पुरातत्वजगत्‌ में इलचल मच गई श्रोर भारत सरकारको श्रगले वर्षों म वर्की नियमित श्रौर व्यवस्थित खुदाई का प्रबंध करना पड़ा । मोरेंजोदुड़ो को श्राविष्कृत करने श्रोर एक श्रव्यं प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति से श्राघुनिक युग को परिचित कराने का. सारा श्रेय यद्यपि राखाल बाबू को मिलना चादिए था, किंतु श्रैगरेजी शासन ने यद्द श्रेय दिया माशल को । न वे पूना में थे तमी उनके ज्पेष्ठ पुत्र की मृत्यु दो गईं। इष दुघटना से वे बहुत दुगखी हुए श्रोर उन्होंने चारपाई पकड़ ली । श्रत्यधिक सग्ण हो जाने के कारण उन्हें एक वर्ष का श्रवकाश लेना पड़ा । सन्‌ १६२९४ में वे पूर्वी क्षेत्र के श्रध्यन्ष हुए श्रोर उनका स्थानांतरण कलकत्ता कर दिया गया । यहाँ वे केवल दो वषं रहे। इस श्रवधि में उन्होने जो कार्य किए; उनमें पहाड़पुर की खुदाई बिशेष उल्लेखयोग्य




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