प्रेमचंद का कथा साहित्य और उन पर लिखी आलोचनाएँ | Prem Chand Ka Katha Sahitya Aur Un Par Likhi Aalochanaen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
337
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अनुसूइया श्रीवास्तव - Anusuiya Shrivastav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अन्धी अनुकृतियाँ दोनो बुरी तरह सालने लगी थी। इनको राष्ट्रीय अभिमान तो था
परन्तु वह अधिक मुखर होने का अवसर नही पा सका। किन्तु सामाजिक धार्मिक पक्ष
की विकृतियो को चित्रित करने मे कोई विशेष बाधा नही थी। अत भारतेन्दु-काल की
समस्त साहित्यिक विधाओ मे राष्ट्रीय जागरण के स्वर के साथ-साथ सामाजिक
जागरण का स्वर बड़ी सघनता से सुनायी पडता है। सामाजिकं जागरण का स्वर
राजनैतिक जागरण के स्वर से कही अधिक स्पष्ट ओर उग्र था। भारतेन्दु बाबू भी
उपन्यास लेखन की ओर प्रवृत्त हुए किन्तु बहुत बाद मे। पूर्ण प्रकाश ओर चन्द्रप्रभा
इनका सामाजिक उपन्यास है। इस काल के अन्य सामाजिक उपन्यासो मे
भाग्यवती श्रद्धानन्द फिल्लौरी 1877) परीक्षा गुरू श्रीनिवासदास) नूतन ब्रह्मचारी
सौ अजान एक सुजान (बालकृष्ण भट्ट) निस्सहाय हिन्दू (राधाकृष्णदास)} विधवा
विपत्ति (राधाचरण गोस्वामी ओर देवी प्रसाद शर्मा) श्यामा स्वप्न (ठाकर जगमोहन सिह)
जया (कार्तिक प्रसाद खत्री) लवग लतिका कसुम-कमारी लीलावती वां
आदर्शसती पुनर्जन्म वा सौतिया डाह अंगूठी का नगीना (किशोरी लाल गोस्वामी)
सास पतोहू बडा भाई नये बाब (गोपालराम गहमरी) धूर्तं रसिकलाल स्वतन्त्र
रमा ओर परतन्त्र लक्ष्मी (लज्जाराम मेहता) अधखिला फूल ठेठ हिन्दी का
ठाठ (अयोध्यासिह उपाध्याय हरिओध ) सौन्दर्योपासक राधाकान्त ब्रजनन्दन सहाय)
रामलाल (मन्नन द्विवेदी) वन जीवन वा प्रेम लहरी (राधिका रमण प्रसाद सिह) आदि क
नाम अग्रगण्य हैं। वास्तव मे इन सामाजिक उपन्यासो मे समाज के बुनियादी सत्यो की
पकड नही है। समाज की सतह पर बहती हुई घटनाओं को पकड़ा गया है उनका
निरूपण किया गया है उन घटनाओं ओर परिस्थितियो मे किसी पात्र को डालकर
उसकी उन्नति अवनति की दिशा्एे अकित की गयी हं तथा उसके पाप-पुण्य आर
अन्यान्य क्रिया-कलापो का स्थूल चित्रण किया गया है। इस बात को बहुत ही स्पष्ट
ढंग से दिखाने का प्रयास किया गया है कि अमुक परिर्थितियो मे पडकर मनुष्य भला
या बुरा कर्म करने लगता है। इस काल के सारे सामाजिक उपन्यास सोदेश्य है या यो
कहिए कि उपदेश और समाधान-प्रधान हैं। हर उपन्यास मे समस्या का समाधान दिया
गया है। इन सारे सामाजिक उपन्यासो के विषयो की परीक्षा करे तो हम पायेगे कि
से विपस मे मतमल के कि यार उप यास भारत दू जाजू की मालिक कलि ह या अन
8
User Reviews
No Reviews | Add Yours...