भूषण | Bhooshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhooshan by विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra

Add Infomation AboutVishwanath Prasad Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अतदशन अलकार साहित्य सानव-जीवन की झाँतरिक भावनाओं का अतिरूप है । अत: साहित्य के समी अंगों का मानव-जीवन के अभ्य॑तर से घनिष्ठं संबंध है । इखी से अलं - कारो का भी मानव-जीवन के अभ्यंतर से बहुत गहरा संबंध है, क्योंकि भावों के झभिव्यंजन का विशेष पकार ही अलं. कार' है । सचुष्य किसी वस्तु के झाकार, स्वाद्‌ एवम्‌ रंग झादि के संबंध में झात्माजुभूति का अदर्शन दूसरों पर करता है, किंतु उक्त बातों की 'भिव्यंजना ठीक-ठीक नहीं की जा सकती । इसलिए उनका निरूपण करने के लिए झतिश्रचलित, प्रसिद्ध एवस्‌ ज्ञेय वस्तु का संकेत करके काम निकाला जाता है । किसी मधुर पदाथं का झास्वाद लेने पर॑ लोग उसकी व्यंजना--'गुड़-सा मीठा है , “झंगूर-सा स्वादिष्ठ है' वा 'महुए-सा लगता है---कहकर करते हैं 4 यही नहीं कमी-कभी शब्दों को कणेप्रिय एवस्‌ू भावनाओं को सुखावद' बनाने के लिए भी मूल शब्दों एवम्‌ भावनाओं का परिष्कृत एवस्‌ संस्कृत रूप मनुष्य समाज के समन रखता है । ये दोनों श्रबृत्तियाँ समाज के व्यवहार में इतनी मिली हुई हैं कि हमें कभी-कभी इनके ।वलक्षणु परिवतनों पर भी झाश्चर्य नहीं होता । किसी की खत्यु पर लोग यह नहीं कहते कि झुक मर गया, वरन्‌ समाज में ऐसा कहना अशुभ माना जता है । वे कहते हैं कि “'अझसुक का स्वगंवास हो गयाः वा “असुक संसार से उठ गए' झाद़ि । भावनाओं को सुखावह' बनाने की प्रवृत्ति का भोड़ा रूप हमें सुसलमानी शाही द्रबारों के वार्तालाप में सिलता हे । श्रगर शहेसस्तनत बीम.र हों तो जवाब सिलेगा--'हुजूर के दुश्मनों की तबियत नासाज है ।' जन-समाज में अभिव्यंजन की ऐसी पद्धतियों उसके विकास के समय से ही प्रचलित हो जाती हैं । जत्र भागे चलकर जन-समाज की भाषा साहित्यिक रूप धारण करती है और उसमें अनेकानेक ग्रंथों का निर्माण होने लगता है तब भानव-जीवन और अलंकार




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now