भूषण | Bhooshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
324
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वनाथ प्रसाद मिश्र - Vishwanath Prasad Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अतदशन
अलकार
साहित्य सानव-जीवन की झाँतरिक भावनाओं का अतिरूप है । अत: साहित्य
के समी अंगों का मानव-जीवन के अभ्य॑तर से घनिष्ठं संबंध है । इखी से अलं -
कारो का भी मानव-जीवन के अभ्यंतर से बहुत गहरा संबंध
है, क्योंकि भावों के झभिव्यंजन का विशेष पकार ही अलं.
कार' है । सचुष्य किसी वस्तु के झाकार, स्वाद् एवम् रंग झादि
के संबंध में झात्माजुभूति का अदर्शन दूसरों पर करता है, किंतु उक्त बातों की
'भिव्यंजना ठीक-ठीक नहीं की जा सकती । इसलिए उनका निरूपण करने के
लिए झतिश्रचलित, प्रसिद्ध एवस् ज्ञेय वस्तु का संकेत करके काम निकाला जाता
है । किसी मधुर पदाथं का झास्वाद लेने पर॑ लोग उसकी व्यंजना--'गुड़-सा
मीठा है , “झंगूर-सा स्वादिष्ठ है' वा 'महुए-सा लगता है---कहकर करते हैं 4
यही नहीं कमी-कभी शब्दों को कणेप्रिय एवस्ू भावनाओं को सुखावद' बनाने के
लिए भी मूल शब्दों एवम् भावनाओं का परिष्कृत एवस् संस्कृत रूप मनुष्य
समाज के समन रखता है । ये दोनों श्रबृत्तियाँ समाज के व्यवहार में इतनी मिली
हुई हैं कि हमें कभी-कभी इनके ।वलक्षणु परिवतनों पर भी झाश्चर्य नहीं होता ।
किसी की खत्यु पर लोग यह नहीं कहते कि झुक मर गया, वरन् समाज में
ऐसा कहना अशुभ माना जता है । वे कहते हैं कि “'अझसुक का स्वगंवास हो
गयाः वा “असुक संसार से उठ गए' झाद़ि । भावनाओं को सुखावह' बनाने
की प्रवृत्ति का भोड़ा रूप हमें सुसलमानी शाही द्रबारों के वार्तालाप में सिलता
हे । श्रगर शहेसस्तनत बीम.र हों तो जवाब सिलेगा--'हुजूर के दुश्मनों की
तबियत नासाज है ।'
जन-समाज में अभिव्यंजन की ऐसी पद्धतियों उसके विकास के समय से
ही प्रचलित हो जाती हैं । जत्र भागे चलकर जन-समाज की भाषा साहित्यिक
रूप धारण करती है और उसमें अनेकानेक ग्रंथों का निर्माण होने लगता है तब
भानव-जीवन
और अलंकार
User Reviews
No Reviews | Add Yours...