एक समर्पित महिला | Ek Samarpit Mahila

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Ek Samarpit Mahila by श्री नरेश मेहता - Shri Naresh Mehta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहानी का झ्षत्र छोटा है, भत्त: उसमें एक प्रकार की शिप्रता आकार को भी हो सकती हे तथा उसके प्रभाव की मो । ऐसी कलित्रती या अनुभव की तीदणता संसार के सारे दड़े कहानीकारों में अपनै-अपने दंग से मिलती हैं। कुछ लेखकों को ढोछी दुनावट की कहानी कहते में सिद्धदस्तता प्राप्त हो सकती है ही किसी को एक दम चुस्त बुनावट की कहानी का ढंग प्रिय हो सकता है। किसी को सीधें-सादे लोग और उनकी अत्यन्त सादी जिन्दगी को प्रस्तुत करना रुचिकर हो सकता! है हो किसी को गुम्फित व्यक्तित के लोग और बड़े ताम-झाम को भकने में अच्छा लग सकता हू। और अपत्या ये बातें हो कहानी के रूप, प्रभाव आदि को शासित करती हूं। अतः किसी भी रवेना के बारें में सैद्न्तिक था ध्यवस्थात्मक व्यवस्था दे सकता ्रामक होगा । प्रश्न हैं कि रवना का आप पर प्रभाव हुआ कि नहीं ? प्रभाव से तात्पर्य है. कि रचना में आप के शिकंट सायेकता प्रहण की या नहीं ? जिस प्रकार आाप्रहू करके इम इस था उस ढंग की कहानी से प्रभावित नहीं दोते, उसो प्रकार इस पा उस प्रकार की पढानियों के छिखे जाने की हठता भी नहीं की जा सकती । कहानों यदि लेखक की कलात्मक रचना-परक्रिया में-से निः्सूत हुई है तो निश्चय ही बहू पाठक एवं काल के सन्दर्भ में साथंकता प्राप्त करके रहेगी । अ्रयोगशीरू या चौंकाने वाली कहानियाँ किसी भी समय मैं ऐसी शा्मकता नदी ग्रहण कर सकी हैं। कभी-कभी कई से ऐसी प्रापभिकता पा जाती हैं पर समय, लोगों की ऐसी भूलों को दीक कर दिया करता है। प्रायः एक मूख मह को जाती रही हैँ कि जो कहानी जरा भी गहरे श्तर पर घने लगती है, उसे न जाने कितने प्रकार से लाछित कर पंक्तिच्युतत कर देने को भे्टा शी जाती हैं। सच हो यह है कि जिस पहनी में एवं जोवन-दूष्टि एकरूप हो जाते है, उप- जरम लेती है। बलात्मक-्बोष से मुझे गलत ने लिया जाए कि शहर




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