कलकत्ता से पीकिंग | Kolkata Se Piking
श्रेणी : पत्र / Letter
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
175
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगवत शरण उपाध्याय - Bhagwat Sharan Upadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कलकत्ता से पीकिग ११
मुह् फी चेष्टा विगाड प्रोठो को विचन्ा देते, गिडगिडाकर हाय फंला
देते । एक लड़के ने, जिसकी पीठ पर एक बच्चा वेधा हुश्रा था, हाय
फंला दात निरोरकर मुभे अप्रेल मे कहा--नो पापा, नो मामा! (न
यापटैन मा) । हगिकाग के भिखमगे भयानक हू । श्राप भल्ला उठे,
लाख कटके, तप्पे , पर दे पिण्ड न योगे, कम्बस्ती फे शिकार, इन्सा-
नियत फे पाप ! सटसा, निमिषमात मं सुरन इव गया । रत कौ पहली
छाया फापती हर्द चराचर फे ऊपर से निकल गई--एक शयामल नोलाभ
रेखा वायु फे हले ककोरे मे वोक्िल 1
पटाटी ढाल पर वने खारी पार के मकानो फे ध्रत्य्य दोप सहसा
जल उठे । दीप वहाँ पहले भी थे, शायद सूरज डूबने के पहले भी, भ्रौर
जल भी रहे थे, फेवल प्रहपति के हतप्रभ होते हो उनकी पौली किरणो
ने उन घसरय दिद्युत तारदो पे मलिन कर दिया था । रात्रि ने झ्भी
प्रपना ष्याम घसन धार नही पिया था, जिसने विद्युत-प्रकाश म्लान
थे, पागल ए दृष्टि-ते--रिष्
उमप्तौ नोट फो दुपदाप देख रहा या । प्रन रणष्टरौ फे लोग उसमें
ध--दोनौ, मलयवासी, इन्डोने्यी, विदेद्यी पयंटक-ददेत, पले, गेहूंए,
'मपते रेदामी सूट पहनें, दिशेपत चीनी, पश्चिम से प्रभावित । उनके
विपरीत दे थे पेददभरे कपडे पहने, डरते फिरते, सुनी नजरें फंफते,
निटमगो सरीखे, पर भिडमने नही । फिर सेनिक, दविटिक्च धर धम-
रोषी । पु दे जो बोरिया दे मोद पर जा रहे थे, पुछ दे जो उस मोर्चे
से दम लेने लौट रहे थे । नौसनिव हाय में हाय दिये सराय दे गन्थ से
हुदा गदी दरते, पूहुषट गाने गाते; ददतमीज, एतरनाक, षध नी कर
इंठनें दाल ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...