जय भारत | Jay Bharat

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Jay Bharat by मैथिलीशरण गुप्त - Maithili Sharan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तरंगों पर. मूलती-सी निकली , करी-कुम्मी यहाँ हलत-सी निकली 1 त्व मेरा, जो मिली न शची भामिनी , दी मेरी सखी भीतर की स्वामिनी 1 वैरी तेजस्िनी धामिजात्य-प्रमलयं , सुनीरसेर्यो पीर स्यो कमला । और पर्च-ता त्वचा का श्रद्र पटथा, ट सूप दूने वग से प्रकट था | 7 वके श्ंग धने दीर्घ कष-भार्‌ से, ग फलक किन्त तीकण ध्रति-धार से। रत्ति लाघव तुरांगनाधों ने धरा , सुगौरव तो. वासवी ने ही मरा 1 [ली उसकी वा गंगाजल ही घुला , घुलती थी जहाँ सोना भी. यहाँ घुला । ल्य बूँदें टपकी नो बडे बालों से . था. विष वा अमृत वह व्यालों से 1 हैं. लहरें रमी तके मुभे वहा, थल -वायु तीनों पानेच्छुक थे रव्य । ही जहो का वना वैसे एक तपना , मैं कैसे वहाँ श्रन्तःपुर भना । सिचा-सा रहा उद्धत प्रथम मैं , निस श्रोर गया हाय | गयारम मैं 1 शची के लिए वात थी विषाद्‌ करी, छमा म धराज श्रपने प्रमाद की । क क्म =




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