निबन्ध - कामुदा | Nibandh Kaumudi

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Nibandh Kaumudi by हरशरण शर्मा - Harsharan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन में पुस्तकों रा मदत्व क्रिस प्रकारं शारीरिक स्वारप्य रखने के लिए पौष्टिक भोजन की ावश्यकता है सी प्रकार मानसिक स्वार्ष्य के किप्‌ सप्साहित्य-सद्‌- अन्यों की झावरवकता दै । पुस्तकों में निददिठ ज्ञान से दो मनुष्य की मानिक षया बौद्धिक सकय का विङाघ होवा ६ै। निनि लोगो ने प्रस्यावलोकन टा महर जाना है, वे नित्य कुछ समय पुस्तकों के वीच अवश्य स्यतीद करते है । यदि कसो कारण थे किसी दिन पुस्तकों का सरग प्रा नह करते चो उस द्विन उनको धमाव-सा भ्रनुभव दोठा ६ै। पुस्तकें इसारे जीवन को पूरक हैं। पुस्ठकों के होते हुए हमें कमी संगी-साधियों का माद दं खटका । प्न्य हमारे सगे मित्र और रुनेदी सला हैं । जीवन में जब॑ कभी भ्रभाद से पोड़ित दो जी भयराता दो, ऐसे समय जद स्नेइ-सदानुभूति की भावश्यकता दो, 'याढ़े समय सददायता के लिए किसी सददेय सखा की खोज दो लो श्राप पुरतकों की शरण में जाइये । वे चस्यन्त मरेम और सददानुमूति की बातें सुनायेंगी शौर मित्र की भांति आपका दुख दूर करें गी । उनमें कोई आपको धीरज देते हुये कद्देगी--'दुश ! थीर होकर घदराता दै । घीरज न सो, सैनिक-समान गे थढ़ ! जानता नहीं राम ने कितना कप्ट सद्दा । पादव मारे मारे फिरे । झन्त में विजय उन्दीं की हुई ।” उनकी वीरता-पूर्ण उष्राह-वर्धक वाण सुन कर चाप वहस्धत्त तान स्वदे ठो जाएंगे ! सो उनमें से कोई धापकी कमर थपथपा कर क्देगी--शावाश | तेरी विजय होगी |” +. पुस्तकें इमारे खिए पथ-निरेंशक हैं । हमें प्रकोभन से थचाती हैं, इमें पथ-्र्ट नदों होने देत शौर प्रकाण-स्वम्भ के समान विश्व सागर मे हैरते इमारे जीवन-नलयान को भाग दिखती दें । खव कमी प्रलोभन या झातड से इम भपना चादशे भूल रहे हो, पथ से भकग जा दहे हो, वो इनके पास जायें | दर्याद' दो, दमारा दाय पकड़ कर हमेंर 1




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