विष्णुपुराण का भारत | Vishnu Puran Ka Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करना चाहता है । इसके लिए वह छल और दल दोनों का प्रयोग करता है। अतः हिरण्यकचिपु के प्रयासों मे कयानक की 'अवरोह'गति छिपी है तो प्रद्ाद के प्रयासों में *आरोद'स्यिति । प्रद्धाद को नाना प्रकार के कष्ट दिये जाते हैं, समझाया जाता है, साधना से दिचलित करने के लिए सम्भव और असम्भव उपाय किये जाते हैं, पर जब हिरण्यकशिपु संकल्प और साधना में प्रह्लाद को हृदद पाता है, तो उसके हृदय का नेराश्य ही कथानक में अवरोह ले आता है) इस प्रकार गाद्यन्त आरोह ओौर अवरोह कौ स्पितिय प्रप्त होती है! इन स्थितियों का. जोवनदर्धन की दृष्टि से जितना मूल्य है, उससे कहीं अधिक कथाकाव्य की दृष्टि से । यतः भावों और अनुभूतियों का वैविध्य पाठक और श्रोताओ को सभी प्रकार से रखमग्न बनाये रखता है । २८ संवाद नियोजन दरार नाटक्षीयता का सभविश--पाण्ड, भमन, राक्षघपुरोदित एवं हिरष्यकयिपु का प्रह्लाद के साय एकाधिक दार्‌ संवाद आय। है। इन सवादोमे नादक्ीयताका रेमे सून्दर ढंग से समावेदा किया गया है, जिसमे पौराणिक इतिवृत्त भो मनोहर कथा के रूप में परिवत्तितत हो गये द भीर फारस चेष रुप में उदय तक पहुँच गया है । ६. तनाव थी स्थिति--जब पौराणिक उपाष्यानों में किसी समस्या का संयोजन किया जाता है और वह समस्या सुलझने की अपेक्षा उत्तरोत्तर उलझी जाही है तो कथानक मे तनाव बा जाता है । प्रस्तुत आइपान में भक्ति्रमर्या कै लाय एकं सवोपरि सत्ता फा अस्ति प्रतिपादित किया गया है। हिरण्यवः. शिपु इस सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता, साथ ही प्रद्धाद वो आस्था को भी विचलित करने का पूर्ण प्रयास करता है । भतः भक्तिसमर्या उत्तरोत्तर जटिल होती जाती है । यत्तेंमान कथालोचक पौराणिक आक्यानों मे देशकाले कौ परिमितियों को स्वीकार नहीं करते, पर इस उपाइ्यान में समस्या का सपन रूप ही देशकाल दी परिमितियों के भीतर सामिक स्थितियों का नियोजन प्रस्तुत करणा है । अतः आधुनिक थमोक्षा की दृष्टि से इस उपाद्यान में मिथ ( हि ) के साथ कथा का तनाव भी पाया जाता है । यातावरण की योजना भी आस्यान में सस्निहित है, इस कारण क्या की आउति सूच्याकार होती जाती है और अपने सरल रूप में उद्देर्य को प्राप्त हो जाती है 1 ७. उपदेश के साथ मण्डन-शिल्प का नियोल्न--पुराधों में सप्डन- शिल्प का प्रयोग उन स्थानों पर पाया जाता है जहाँ पुराणवार किसी पात्र [व]




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