सामयिकी | Saamyiki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
370
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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है
बनाये रखना, विज्ञान, इतिद्यात, साहित्य और' अध्गासका स्थान
तुलसीकृत रामायणकों दे देना और तत्काल ही पुलिस और सेनाको या
देना जैसी बाते मानी जाती हो तो वह अध्यवददार््य हैं । से यह सब
इसलिए, कई रहा हूँ कि गान्धीवादका अभी वैखा गारदीय स्पष्टीकरण
नदीं हुमा है जैश समाजवादका हुआ है । हमारे सामने गान्थीजी और
उनके कुछ प्रमुख शिष्योके स्फुट लेख ओर भाषण हूँ | गान्धीजीने स्वयं
कहा है कि वद जिस रामराज्यको देखना चाहते हैं उसमें यजा और रद;
दोनौके छिए स्थान दोगा, बद ब्रडे यन्बोके पमे नदीं हं परन्तु यद उन्धेने
स्पष्ट कहा है कि उनको कर्यनामें ओ व्यवस्था ३ उषम पूजीपति हगे
अन्तर यह होगा कि वह् अपनेको अपनी प्रग्पत्तिका स्वामी न मानकर
सरक्षक समझेंगे | गान्धीजीने वार बार कद्दा है कि विव्वविद्यालयोषें दी
जानेवाढी शिक्षापर सार्वजनिक धन न व्यय किया जाय । गान्वीजीने इस
बातपर दुःख प्रकट किया है. कि काग्रेस सरकारें भी पुराने साधनोते दो.
काम लेती रहीं | उन्होंने बतेमान युदधमे भी अदिणाप्मक प्रतिकारका पराम
दिया है। इन वातोकों देखते हुए हमारी आशाट्ठा साधार प्रतीत द्दोती है |
जि प्रकार स्वयं गान्धीजी अपने मतकी व्याख्या करते हैं उसको देखकर
यद् कना पडता है कि उनके उपदेशम अशतः बरूत दी ॐ चा, अनु-
करणीय, आदर्श है : शेप या तो अव्यवददार्यय दै या हानिकर ।
कालप्रवादकी दिशाकों उलटनेका प्रयत्न न तो आवश्यक है न
श्रेयस्कर है । मनुष्य जद्दॉतक पहुँचा है उतके आगे बढ़ना चाहिये ;
उस प्रकृतिपर जर्ोतके 'विजय पायी है उससे अधिक विजय प्राप्त करनी
चादिये ; समाजकी ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि शोषक प्रबचतिको
अनुकूल वातावरण न मिल सके और प्रत्येक व्यक्तिको अर्थकाम और
शिभाकी वह् सुविधा प्रात दो जिससे वदद अपनी योग्यताका लोकसंग्रद्दर्श
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