सामयिकी | Saamyiki

Saamyiki by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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©^ है बनाये रखना, विज्ञान, इतिद्यात, साहित्य और' अध्गासका स्थान तुलसीकृत रामायणकों दे देना और तत्काल ही पुलिस और सेनाको या देना जैसी बाते मानी जाती हो तो वह अध्यवददार््य हैं । से यह सब इसलिए, कई रहा हूँ कि गान्धीवादका अभी वैखा गारदीय स्पष्टीकरण नदीं हुमा है जैश समाजवादका हुआ है । हमारे सामने गान्थीजी और उनके कुछ प्रमुख शिष्योके स्फुट लेख ओर भाषण हूँ | गान्धीजीने स्वयं कहा है कि वद जिस रामराज्यको देखना चाहते हैं उसमें यजा और रद; दोनौके छिए स्थान दोगा, बद ब्रडे यन्बोके पमे नदीं हं परन्तु यद उन्धेने स्पष्ट कहा है कि उनको कर्यनामें ओ व्यवस्था ३ उषम पूजीपति हगे अन्तर यह होगा कि वह्‌ अपनेको अपनी प्रग्पत्तिका स्वामी न मानकर सरक्षक समझेंगे | गान्धीजीने वार बार कद्दा है कि विव्वविद्यालयोषें दी जानेवाढी शिक्षापर सार्वजनिक धन न व्यय किया जाय । गान्वीजीने इस बातपर दुःख प्रकट किया है. कि काग्रेस सरकारें भी पुराने साधनोते दो. काम लेती रहीं | उन्होंने बतेमान युदधमे भी अदिणाप्मक प्रतिकारका पराम दिया है। इन वातोकों देखते हुए हमारी आशाट्ठा साधार प्रतीत द्दोती है | जि प्रकार स्वयं गान्धीजी अपने मतकी व्याख्या करते हैं उसको देखकर यद्‌ कना पडता है कि उनके उपदेशम अशतः बरूत दी ॐ चा, अनु- करणीय, आदर्श है : शेप या तो अव्यवददार्यय दै या हानिकर । कालप्रवादकी दिशाकों उलटनेका प्रयत्न न तो आवश्यक है न श्रेयस्कर है । मनुष्य जद्दॉतक पहुँचा है उतके आगे बढ़ना चाहिये ; उस प्रकृतिपर जर्ोतके 'विजय पायी है उससे अधिक विजय प्राप्त करनी चादिये ; समाजकी ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि शोषक प्रबचतिको अनुकूल वातावरण न मिल सके और प्रत्येक व्यक्तिको अर्थकाम और शिभाकी वह्‌ सुविधा प्रात दो जिससे वदद अपनी योग्यताका लोकसंग्रद्दर्श




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