देशबन्धु दास चितरंजन दास | Dashbandhu Chitranjan Das

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Dashbandhu Chitranjan Das by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হই देशबन्धु दास सोति भ्रेष्ठटर है। पस्ड़ितवर उम्ेशचन्द्र ,चिचास्त तथा हे परिडित सरेशचन्द्र समाजपतिको इन्होंने ही आश्रय प्रदाव किया। जिस समय प्रसिद्ध मासिकपल “साहित्या ऋणभाय्से दवकर बन्द होनेवाला था उस समय इन्होंने उलको ऋणमुक्त करके -फिससे खाहित्यसेवा मागेपर खड़ा किया ।_* खर्गोय गाविन्द्चन्द्र दास पूर्व व्भालके प्रतिभाशाढी कवि थे परन्तु हुर्देघको उनसे कुछ विशेष स्नेह था। उनका इतना निरादर हुआ कि ढाकाके वडूसाहित्य सस्मेलनमें प्रचेश करनेका सधिकारतक नहीं मिला ; उधर घनाभाव इतना था कि सचमुच বি भूखों मररदे थे | उन्होंने अपना दृदयोद्वाए जिन वेंगछा সানীর प्रकट किया है वह তুর करने योग्य हैं । अर्थ अनायास हो समझ्मर्मे भाजाता है । ओ भाइ वड़ूबासी । आपमि मोछे तोमरा भामार चिताय दिये मठ | श्न जे मासि उपोव स्री, ना सेये पराने मरी, € मोछे--मरमेपर ) हाद्यकारे दिवानिशि छुथाय फरी छटपट | भाग्यफी यात दे । इतने पर भी पदिले कोई इनको सद्दायता करने पर तत्पर नहीं हुआ। यदि हुआ तो पक व्यक्ति सित्तरख्न सीर यद भी इस प्रकार कि दानमें दाताके महंभाचका पत्ता न चट | नकप जयन्‌ दद्य दनक टै निद्टिखित कब्रितासे प्रकट डी जायगा 1 कद




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