वेनिस का सौदागर | Venis Ka Sodagar

Venis Ka Sodagar by रांगेय राघव - Rangeya Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहुला ह + नियंत्रण में रह सके कितु यौवन की उत्तेजनाएं संयम में रखते के लिये दबा देने के लिये बहुत उम्र होती है। पगली जवानी उस पागल खरगोश की तरह होती है जो कि सदुपदेश कै निर्वेल जाल से शीघ्र भाग निकलता है। लेकिन इस तर्क से मुं श्रपना पति चुनने मे क्या साभ मिलता है ? चुनना ! हाय कंसा शब्द है! न से पसंद का व्यक्ति चुन सकती हूँ, न नापसंद व्यक्ति से इंकार ही कर सकती हूँ । ऐसी ही तो है एक मृत पिता की वसीयत जो एक जीवित लडकी को सब तरफ से जकड़ें हुए है ! क्या यह्‌ मेरे लिये कठोर बात नही है नैरिसा ! कि जिसे चाहती हूँ उसे पा नही सकती श्रौर जिसे नही चाहती, उससे इंकार नही कर सकती ? नैरिसा : तुम्हारे पिता पवित्रात्मा थे श्रौर पवित्र व्यवित मरते समय सदैव एषे ही प्ररणादायक कार्यय करते है। इसलिये जो इन तीन-- - सोने, चांदी भ्रीर राग के डिव्बो की लॉटरी उन्होने रखी है, कि जो मी ठीक डिब्बा चुन लेगा, तुम्हे पायेगा, निस्सदेह, वही ठीक चुनाव कर सकेगा जो तुम्हे सच्चा प्यार करता हैं। सच बताओ, तुम्हारे मन में इन विवाहेच्छुक कुलीन राजकुमारो के प्रति क्या है, जो झा गये है! पोशिया : एक-एक नाम दहराती चल ओर मे कहूती चली, ._ वस उसी से मेरे मन की वात का अनुमान लया लेना । नरिसा : सबसे पहले तो नेपल्स के राजकुमार है । पोशिया : बहू तो घोड़ा है, जो भपने घोड़े के सिवाय और किसी विषय पर बात ही नहीं करता। और इसमे तो शरयती खास क्रावलियत समता हैं कि वह खुद ही थोड़े की नाल भी ठोक लेता है । नैरिसा : और वह है, वह पैलैटाइन का काउन्ट !




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