बंकिम चन्द्र प्रतिनिधि निबंद | Bankim Chandr Pratinidhi Nibandh

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Bankim Chandr Pratinidhi Nibandh by अमित्रसूदन भट्टाचार्य - Amitrasudan Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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का डा करने से दूसरे का गंभीर रूप से नुकसान होता हो वह सत्य पालन करने योग्य नहीं है। उनके लिए सत्य कोई आधारहीन आइडिया मात्र नहीं है मंगल और कल्याण के साथ उनकी सत्यभावना जुड़ी हुई है। उनका विख्यात प्रबंध है विड़ाल । पृथ्वी के क्षुधार्त मनुष्यों के लिए उनके पक्ष में उनके अनुकूल इस प्रकार की तीवतम सफल साहित्यसृष्टि भारतीय साहित्य में बंकिमचंद्र से पहले किसी और ने की है या .नहीं मुझे नहीं मालूम। कमलाकांत इस निबंध में मानो उच्च-समाज़ का प्रतिनिधि और चतुष्पद वह क्षुधार्त विड़ाल बिल्ली आहार में उदर कृश अस्थि परिदृश्यमान विनत केवल बंगाल की नहीं केवल भारतवर्ष की नहीं-समस्त पृथ्वी के दलित अवहेलित क्षुधार्त मानव संप्रदाय की मुखपात्र है। इस निबंध में बंकिम ने कानूनी विचार की अपेक्षा मानवीय मूल्यबोध के ऊपर ही अधिकतम ध्यान दिया है। अदालत का कानून समाज की रक्षा बाहरी तौर पर कर सकता है लेकिन एक देश का वास्तविक मंगल केवल उसके कानूनी शासन पर निर्भर नहीं रह सकता। अदालत चोर को दंडित करने विधान करती है लेकिन चोर चोरी क्यों करता है अदालत इसका अनुसंधान नहीं करती। बंकिमचंद्र का सुस्पष्ट अभिमत है अधर्म चोर का नहीं है-चोर जो चोरी करता है वह अधर्म कृपण धनी का है। चोर दोषी जरूर है लेकिन कृपण धनी उसकी अपेक्षा सौ गुना दोषी है। बंकिमचंद्र ने समाज को नयी दृष्टि से देखने का उस प्रर विचार करने का आह्वान किया है। वैज्ञानिक तत्वमूलक प्रबंध है चंद्रलोक । यह उनके विज्ञान रहस्य नामक गंथ से है। पुस्तक के प्रथम संस्करण की भूमिका में लेखक ने कहा है कि केवल साधारण पाठक वर्ग ही नहीं आधुनिक शिक्षिता बंगाली स्त्री जिससे सारे वैज्ञानिक तत्व समझ सके लेखक का उददेश्य यही है। ख्रियों के बीच भी विज्ञान शिक्षा का जो प्रयोजन है उसे बंकिम ने उन्नीसवीं सदी में बंगाल की मिट्टी में खड़े रहकर भी अनुभव किया था। उन्नीसवीं सदी में रचित तुलनामूलक साहित्य समालोचना का एक उत्कृष्ट उदाहरण है शकुंतला मिरांडा और डेस्डिमोना। भारतीय साहित्य में सीता के सहसख्ों अनुकरण हए हैं लेकिन द्रौपदी का अनुकरण नहीं हुआ। क्योंकि आर्य साहित्य में द्रौपदी अकेली और स्वतंत्र है- द्रौपदी प्रबंध में उक्त चसयितरि के विश्लेषण-सूत्र से इस प्रसंग की व्याख्या हुई है। इस प्रबंध के दस वर्षों बाद इसका द्वितीय प्रस्ताव लिखा गया। पन्द्रह जा




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