अम्बपाली | Ambapali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अम्वपार्ली ४ 17
अम्बपाली : वेशाली ? बंद्याली में बया है ?
अरुणध्वज : फात्युनी उत्सव ! हम वृज्जियों का प्यारा राष्ट्रीय
त्योहार ! किस चुज्जिकिशोरी-वृज्जिकुसार के मानस में इस उत्सव के नाम
से ही भावनाएं तरंग-पर-तरंग नही लेने लगती ! गौर, इस साल तो उसका
विशेष महत्व है। वैश्ञाली की राजनत्तकी देवी पुप्पगन्धा अब भवकाद
ग्रहण करने जा रही हैं, उनकी जगह इस साल नई राजनतंकी का चुनाव”
मसिघलिका चुनाव फा नाम सुनते ही इन दोनों के नजदीक भाती
भोर माइचयें-भरे स्वर में कहती है--]
मधूलिका : चुनाव ! इसी साल !
अरुणध्व्ज : हां, हा; इसी साल ! देखें, वह कौन-सी सौभाग्यदातिनी
बूज्जिकुमारी होती है, जिसके चरणों पर हजार-हजार राजकुमारों के
र्ट.“
अम्बपाली : (अचानक चिट्ला उठती हैं) ऐं ! ऐं !
अरुणध्वज : क्यौ ? यों सहम षयो उठी ?
मधूलिका : कह, क्यो ?
अम्वपाली : मच, मधु ! (हायों से मना करती है)
अरुणध्वेजं : क्या बात है मधु !
मधूलिका : (विनोद-भाव से अम्बपाली को देखती ) क्यों ?
अम्बपाली : (गुस्सा दिखाती) तू चुप रहती है, या***
मधूलिका : यारु पीट देगी, यही न ! तो, सुनिए, अरुणणी, उस दिन
ज्योतिपीजी ने अम्बपाली से कहा--
[मभ्बपाली मधूलिका की भोर लपकती है--भर्णष्वज उत्का हाय
पकड़ लेता है--वह भोड़ी देर तक हाय छुड़ाने को कोदिश करती है--
फिर गम्भीर होकर मधु से कहती हैं--]
अम्बपाली : अच्छा, योल, क्या ज्योक्तिषीजी ने कहा ?
मधूलिका : ज्योतिपीजी ने अम्बपाली से कहा--“हजार-हजार सज~
कुमारी के मुकुट तुम्हारे चरणों मर लोटेंगे ! ” बह डरती है, कही वही ने
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