लहर लौट गई | Lahar Laut Gai

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Lahar Laut Gai by कमलेश्वर - Kamaleshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मां: पिताजी मां पिता जी पिता जी : मां: पिताजी: मां: पिताजी: मां: चिंता जी : 1: मैंते तुमसे पहले ही कहा था कि साफ-साफ ते कथ मा पिताजी : माँ: लहर लौट गई 15 (शोर पीछे छूट जाता है“) कुछ तो ख्याल किया करो रजनी के बादुजी ** इतनी औरतें-बहुएं खड़ी थीं और सबके बीच से तुम हाथ पकड़ कर खींच लाए ; सुनो भो“ : सुनाओ क्या है ? ( खीमती. हई) : यहा नही, कमरे मे चलो भीतरः (कमरे का आभास कोलाहल एकदम समाप्त हो जाता है, कमरे में खामोशी छाई है 1) सब बिगड़ गया“ (खीककर) आपको हुआ क्या है। कुछ वताओगे कि चस यही ५. (खीककर) अरे रजनी की मां, सब बिगड़ गमा जी कुछ सोचा था सब पर पानी फ़िर गया *** (चौकिकर) ष्या ? हां { सममे नही भाता--“रजनो के भाग्य में न जाने कया बदा है***मदन का ब्याह भी कर लिया बयो मदन की ससुरालवालों ने कुछ भी नहीं दिया क्या? दिया तो सव ष्ठ, पर वह हमारे किस मतलब का लो ““मने इसीलिए बुरह इतना कोचा था पर तुम तो ०५४ (चिढ़कर) सुनो भी, मैंते सदन के ससुर से टीके के वक्‍त ही कह दिया था कि हमें चीजें नहीं, रुपया चाहिए** शादी में जो भी चीज़ें देने का आपका इरादा हो, उनकी बजाय हमें रुपया दे दीजिए” * चीजें भी तो नहीं दिखाई पड़तीं। ढूंढ ऐसी बहु आई हैः भाया कया है ससुराल से “ (चीखकर) चीजें भी




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