गीत - फ़रोश | Git Pharosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मैदान में ऊगने के लिए टेरें ! जाने-अनजाने संकोच की एक खरोंच हम पर हावी है, रुकी हे जिसके सवब वह होनहार जो अवरयंभावी है हम उसकी मदद नहीं करते सिफं मुह्‌ ताक्ते ह वह हमको पुकारती है हम बगलें झाँकते हें ! हमारी आँखों में नींद के तिनके गड़े हे हम उससे बोले बिना अपने बिस्तरों पर पड़े हे ! समय के ज्वार पर हमने नींद को माना हे मल्लाह ! होनहार पुकार कर कह रही है कि आह, ऐसे मुर्दों को लहरें ज्वार की बिना प्यार के किनारों पर फेंक देती हे और जागने वाले, सुनने वाले, करने वाले के चरणों में माथा टेक देती हें ! छह गीत-फ़रोदा




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