ऋग्वेद - संहिता | Rigved Sanhita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ˆ ६ भः), ८ अठ. अध्या०, २ अंनुण ] सडीक ऋग्वेद-संदिला ६
स्तुहि भ तं विपदिचतं हरी यस्य प्रसक्षिणा ।
गन्तारा दाशुषो णहं नमस्विनः ॥१०॥
तूत॒जोनो महेमतेऽेभिः परुषितप्युभिः ।
आयाहि यज्ञमाशुभिः शमिद्धि ते ॥११॥
इन्द्र॒ राविष्ट स्यते रयिं श्णत्यु धारय ।
श्रवः सूरिभ्यो अश्रुतं वसुखनम् ॥१२॥
हषे ता सूर उदिते हषे मध्यन्दिने दिवः ।
जुषाण इन्द्र॒ सपिभिनं आ गह ॥१३॥
आतु गहि प्र तु द्रव मत्सरा सुतस्य गोमनः।
तन्तु तनुष्व पूर्ध्यं यथा त्रिदे ॥१९॥
यच्छक्रासि परात्रति यदववति वृत्रहन् ।
यद्रा समुद्रं अन्धसोऽवितेद सि ॥१५॥
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१० स्तोता, तुम विद्वान ओर विरूधात इन्दरकी स्तुति करो । इन्द्रके शत्रज्ेता दोनों अश्व
नमस्कार और हविवाले यजमानके घरमें जाते है ।
१४ तुम्हारी बुद्धि महाफल-दायिका है । तुम स्निग्ध हो । शीघ्रगामी त्रश्वरे साथ यज्ञम भागनन
करो; फ्योंफि उस थक्षमें ही तुम्हें खुख है ।
१२ श्रेष्ट, बली अर साधु-गक्नक इन्द, हम स्तुति करते है; हमें घन दो । स्तोताओंको अधि-
नाशो भौर व्यापक अन्न घा यश दो।
१३ इन्द्र, सूयदिय होनेपर मैं तुम्हें बुलाता हाँ; दिनके मध्य भागमें तुम्हें बुलाता हू । प्रसन्न होकर
गतिशील अश्वोंके साथ आओ |
१४ इन्द्र, शीघ्र जाओ और सोम जहाँ है, बहाँ शीघ्र जाओ । दुग्ध-मिश्रित अशिधुत सोमसे प्रीत
होओ । भनन्तर मैं जैसा जानता हैँ, बैसे दी पू्व-त्र विस्तृत यज्ञको निष्पनन करो ।
१५ हे शकः भीर चत्रघ्न, यदि तुम दूर देशप्रें हो, यदि समीपमें हो, यदि अन्तरीक्षें हो, ततापि
उन सब स्थार्नोँसे आकर अर सोभपान करके रक्षक शोभो ।
य्
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