तीर्थकर वर्द्धमान | Tirthakar Vardhman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीष साहित्य भं चौबीस तीर्थकर श्रस्मिन्बं भारते गवं जन्म वे श्रावके कुले । वयसा. यु क्मात्मनं केशोत्पाटन पूर्वकम्‌ \\ ती्थंकरारचतुविशलयातस्तु पुरस्कृतम्‌ । छायाहतं रणीन्द्रेण ध्यानमात्र प्रदेशिकम्‌ ।।' ~- दैदिक पदूमपुराण ५॥ १४। ३८९-९० (इस भारतवर्ष में २४ (चौबीस) तीर्थकर श्रावक (क्षत्रिय) कुल में उत्पन्न हुए । उन्होने केशलुचनपूवं क तपस्या मे अपने आपको युक्त किया । उन्होने दस निग्॑न्थ दिगम्बर पदं को पुरस्कृत किया । जव-जव वे ध्यान मे लीन होते थं फणीन्द्र नागराज उनके उपर छाया करते थे ।) चौबीस तीर्थकरों के नाम इस प्रकार हं-- ऋष भनाथ,अजितनाथ,सम्भवनाथ, अभिनन्दन नाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभमनाथ, सुपाश्वंनाथ, चन््रप्रभनाथ, पृष्पदन्तनाथ, रीतलनाथ, श्रेयासनाथ, वासुपूज्यनाथ, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धमना, शान्ति- नाथ, कुन्युनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसूव्रतनाथ, नमिनाथ, नेमि- नाथ, पादवं नायं जौर वीरनाथ ।' डा. बुद्धप्रकाश डी. लिट्‌. ने अपन ग्रन्थ भारतीय धमे एवं संस्कृति में लिखा है-- “महाभारत मे विष्णु के सहस्रनामों में श्रेयांस, अनत, घर्म, शान्ति ओर संभव नाम आते हं ओर शिव के नामों मे ऋषभ, अजित, अनन्त ओर घमं मिलते हैँ । विष्णु ओौर शिव दोनो का एक नाम सूव्रत दिया गया है। ये सब नाम तीर्थकरों के हैं। लगता है कि महाभारत कं समन्वयपुर्ण वातावरण में तीर्थकरों को विष्णु और दिव के रूप में सिद्ध कर धार्मिके एकता स्थापित करने का प्रयत्न किया गया । इससे तीर्धंकरों क्री परम्परा प्राचीन सिद्ध होती है ।




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