दुखी दुनिया | Dukhi Duniya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'काटेका ताना कादेका बाना ६
सुत्रद्मएयम् कारीगरीके दांव-पेचोंसे हमेशा ही भरा रहता था । उससे
पाथसारथीके कथनका शभिपाय अपने ढंगसे निकाला । वह बोला--
“बिलकुल ठीक है । किंतना ही प्रयन्न किया जाय, कपड़ा कभी एक-सा
नहीं हो सकता | कहदीं ज्ञरा-सा पतला सूत ्रागया तो माल् होता है कि
कपड़ा भिर-फिरा है । इसका कुछ इलाज है ही नहीं । हमेशा जुलाहों ही
की गलती नहीं होती |
“हों, हम लोगोंको इन बंचईवालोंसे कह देना चाहिए कि उनको
करौं ग्रौर चस्लोसे मिलकर-से कपडकी श्राशा नदीं रखनी चाहिए
कराये श्राखिर करे हूं आर चरस ग्राखिर चरखे ।” `
“हुं” सुब्रह्माएमू बोला, “आर उनको यह भी समभ, तेना चाहिए.
कि गांधीजीने कालीयूरमें कोई मिलें नहीं खड़ी की हं, जसि वे विना पूंजी
लगाये मजेसे कपड़ा मंगा सके |
“ठीक है | गांधीजीने एक घरेलू उद्योग खड़ा किया है और
उससे सेंकढ़ों-दजारों ख््री-पुरुषोंको पेटकी ज्वालामें भस्म होने-
से बचाया है । फैशन श्रौर शौकको चाहिए कि पतले और बढ़िया
मिं सौंदर्य ने देखकर गरीबोंक्री रोटी देनेगें सोंदय दूखे |”
इस प्रकार हाथके' कते-बुने कपड़ेके सानस-शाख्रपर बात हो रही थीं
कि इतनेमें एक जुदिया श्र और पार्थसारथीके परॉपर पंसें फंक सिस-
कियां लेती एकदम फूट-फूद कर रोने लगी |
“क्यों, क्या है १” पार्थसारथी से मुस्कराकर पूछा । वह जानता था
कि यह कातनिवाली प्रायः जरा-जरासी बातपर रो उठती है |
“पने पैसे चापिस ले लीजिए । मैंने अपनी एक़माब श्रौलाद्ः ग्रपन।
विघवा पुत्री--श्रपसे सबस्व--को चितापर रख दिया | श्व में श्रमासी
बूटी जीकर क्या करूंगी ?” बुट्टिया रोने लगी |
लेकिन वात क्या है ¢ पाथसारथीने पूछा ।
“पक्के मरने दीजिए | श्रपने पसे वापिस ले लीजिए; मुके आपके
पैसे नीं चादिएं |”?
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