चट्टानें | Chattanen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
परदेशी (26 जुलाई 1923 -- 20 अप्रैल, 1977) भारत के हिन्दी लेखक तथा साहित्यकार थे। उनका वास्तविक नाम मन्नालाल शर्मा था।
प्रेमचंद और यशपाल के बाद परदेशी ही ऐसे लेखक थे जिनकी रचनाओं का सर्वाधिक भाषाओं में अनुवाद हुआ है। प्रेमचंद के बाद उपन्यासकारों में परदेशी का विशिष्ट स्थान है। उनकी स्मृति में राजस्थान की प्रतापगढ़ की नगरपालिका ने एक छोटा सा सार्वजनिक पार्क भी निर्मित किया है।
जीवन परिचय
परदेशी का जन्म सन १९२३ में राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के पानमोड़ी ग्राम में हुआ था।
नौ वर्ष की उम्र में परदेशी उपनाम रखकर काव्य लेखन आरंभ किया। चौदह वर्ष की उम्र में परदेशी का लिखा ‘चितौड़’ खंड काव्य प्रकाशित
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चट्टानें
चाँद-सुरज जिनके पहुरुए हैं--ऐसे रतनगढ़ वाले रावले की
भाँजी है अचला देवी ! ”--अविनाश ने तनिक व्यंग्यपूवक
कहा । किन्तु जवान इसे अपनी वार्ता का अनुमोदन जान,
बोला--“बाबू, ठीक कहते हो 1“
“करौंदी की इन अंकड़-बंकड़ झाड़ियों की तरह, जिनके
जीवन के सुत्र उलझे हुए हैं, मेरा अनुमान है साधारण मनुष्यों
की अपेक्षा उनमें कुछ अन्तर है। यह भूमि ही बड़ी विचित्र
प्रतीत होती है, ऐसे ही विधित्र होंगे न यहाँ के प्राणी ? ”
--अविनाद ने जैसे अचला की आँखों से प्रदन किया है,
इस प्रकार, उत्तर भी वह् उसके तरक रतनारे लोचनों में ही
खोजता रहा ।
परन्तु, उत्तर न मिला ।
दाए हाथ पर, पगडंडी से हटकर एक कुर्यां थी ।
--जवान ने आगे बढ़ कर अपना लोटा डोर संभाला ।
--भौजाई कुद्याँ पर छाया-रचते पीपल के भैरो के
चबूतरे पर माथा टेक कर एक ओर बैठ गयी ।
--अचला उसके पीछे थी । वह निःसंकोच भाव से जवान
के निकटं वदी । प्यास उसे नहीं थी पर वह पहली बार यहू
देखना चाहती थी कि गाँव के कुओं का पानी कैसा होता है ?
--अविनाश दूर तक परक पसारे रतनगढ़ं को पट् लेना
चाहता था, मानो, रतनगढ़ अजनबियों का. गाँव नहीं, क़ानून
की कोई पोधथी है, जिसमें धारा, नियम, उपनियम, जुर्माना
और सजा की अवधि लिखी है 1 ' *
चारों बठोही फिर बढ़ चछे ।
®
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