हिम - तरंगिनी | Him - Tarangini
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand); ३ ;
खोने को पाने शये रहो?
रूठा यौवन-पथिक, दूर तक
उसे मनाने आये दो?
खोने को पाने श्राये हो?
आशा ने जन झंगड़ाई ली,
विश्वास सिगोढ़ा जाग उठा;
मानो पा, प्रात, पपीहे का-
जोडा प्रिय बन्धन त्याग उठा,
मानों यमुना के दोनों तट
ते लेकर लहर की बाहे-
मिलते मे श्रसफल कल-कल मे-
रोये ले मधुर मलय थाह,
क्या सिलन-मुग्ध को, बिछुड़न की,
वाणी समभकाने आये हो ?
खोने को पाने श्राये हो?
जव वीणा फी खरी खीची,
येयस कराह भकार उठी,
मानो कल्याणो वाणी, उठ-
गिर पढ़ने को लाचार उठी,
तारों मे तारे डाल - डाल
मनमानी जच सिजराब हुई,
बन्धन की सूली के भूलो-
की जब थिरकन बेतात्र हुई,
हिम-तरंगिनी 3 | [ पोच
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