साहित्य देवता | Sahitya -devta

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Sahitya -devta by माखनलाल चतुर्वेद्दी - Makhanlal Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मा, सब रिर उसके पास ्ैनसा लाल रह जाता, शालेत छोड़ने फे लालच के तिवा । भक्ति की 'माजी गरिन लॉन के सामने, मुक्ति की सहमानी' का मूल्य ही ख्सिया | * अुस्याभस क राणा है शोश ध्याम राधिका दागी आए पदारप करत सजूरी मुक्ति भरत अर्ह पानी । फिनु ' छाग्रवादी ? के माम से यदनाम के मुँह से निश्वलनेवाली बाणी पर छितने नाराज ! बेदान्त री रेतीली आवाज में सोड्वमस्मि! सुतझर इस सम मी लेते हैं, पिर मी डुला देते हैं | डिन्तु यही वात यदि कोई भातिओों पे भिंगोहर मणि की घरसती में कह दे [-पह अपराधी / जो भास-यास॒ बहतेशले मन्‍्द समीरण से श्वना-पैसी करता है, नो तिवलियों पे लेलता, पिट्टियों पे मिलकर पहरुता, गड़ए भीरयमुना हे स्वर से सर मिलाकर भपनी मीठी स्पृ्तियों थ दुद्राता, वो उद॒एड होगे पर हवा पर दागे कसता, कियों की च्रटक का चुटकियों एजाकर समर्मन करता ई उसे रोश्नेवाला रन ! काम क्य बोलना है उससे गड़ी कठिमाई से होता है फिर रह बोलने का छाम अपने पास ईंसे एल सके ! सीझ भर रीर दांनों ही कं उत्तके पयलपन पर ढाझ्य डालने रू अधिकार महीं। जब सह ये छिसी ददय से, ऋषिभों के अक्षरों में लिसी न आई हों। उसके एक ही सर ह्ीता हैः-- # हन्द के एुहाए कर्बात तेरी शहूरत शरे छिए प्पारे हिन्दुमाती हो पुंपो म। ? भक्तों ही यही झान, दृदय की यही पे-प्ी, पराणों रा यही श्दृ ++ मुक्ति मरत जईँ पानी




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