साहित्याचार्य डॉ॰ पन्नालाल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ | Sahityacharya Dr. Pannalal Jain Abhinandan Granth

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : साहित्याचार्य डॉ॰ पन्नालाल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ  - Sahityacharya Dr. Pannalal Jain Abhinandan Granth

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भागचन्द्र जैन - Bhagchandra Jain

Add Infomation AboutBhagchandra Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सम्पादकीय वक्तव्य : साद्छिस्याचच्रार्य गँ. प्नन्लाखाकरू जेत अच्निन्न्द्दनन अंध” को लोकार्पित करते हुए हमे सातिशय प्रसन्नता की अनुभूति हो 'रही है । यतः सुधीजनो, परम पूज्य सन्तो, राष्ट्र नेताश्नो, सामाजिक कर्णधारो श्रौर विविच क्षेत्रो मे भ्रषने प्रशस्त कृतित्व से सम्पूणं वसुन्धरा एवं चिन्तना को महिमा-मण्डित करल वालो का प्रतिनन्दन सदैव स्वागतेय है । सुधीजनो के प्रतिनन्दन की परम्परा सुदूर प्ाचीन- काल से प्रवर्तमानं है । सुप्रसिद्ध चिन्तक श्रोर धर्म॑शास्त्र-विश्लेपक महाराजा मनु ते सम्मानार्हता के पाच प्रसगो का उल्लेख कर “व्या? को ही सर्वे्ेष्ठ श्रमिनन्दनीय निरूपित किया है - वित्त बन्धु वय. क्म, विद्या भवति पञ्चमी 1 एतानि मान्यस्थानानि, गरीथो यद्‌ यदुत्तरम्‌ 11 श्रौर एतदनुसार नी ति-ममेज्ञ का यह कथन भी सुधीजनो के प्रतिनन्दन की ही श्राशसा करता है :-- “ स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान्‌ सवत्र पुज्यते ।” ~~~ ~~~ -----~-------------~ सुधीजनो ने राष्ट्र, साहित्य भ्ौर सस्कृति के विविध पक्षों को सर्स्वधित श्रौर सुरक्षित करते हुए उनके सागोपाग समुन्नयन हेतु भगीरथ प्रयत्न किये हैं । प्रत्येक राष्ट्र और 'राष्ट्रीयता की सर्वतोमुखी अभिव्यक्ति उसके साहित्य श्रौर साहित्य प्रणेतागो से होती है । युग-युगो से जिन सनीषियो ने द्य श्रौर श्रदृक्य के प्रति अ्रपनी निन झनुभूतियों को शब्दों के माध्यम से मूतेमान क्या है श्नौर - “ श्रनन्तणरं छ्ल्लि शब्दशास्त्रं, स्वल्पं तथा 55 यु बंहुबदच दिष्ना. । सारं ततो ग्राहसपास्य फल्गु, हंसं यंथा क्लोरमिवाम्बुमध्यात्‌ ॥(२ के विशेषज्ञो नै श्रयने स्फ़ूतं भौर भ्रोजस्वी चिन्तन को भ्रागामी पीठी द्वारा विर्लेषित श्रौर श्राविष्कृत किये जाने हेतु सुरक्षित कर रखा है, विज्ञान के इस विकासवादी युग मे भी उनके चिन्तन श्रौर निष्पत्तियां निश्चित ही प्रकाश-स्तम्म का कार्यं कर रहे है । ऐसे सुधीजन समाज, साहित्य, श्रष्यात्म, सस्कृति श्रौर राष्ट्र को धरोहर होते है । उनके जीवन-दशंन, आस्थाग्रो, नैत्तिक मूल्यो, साधनाभ्रो और साथेक कृतित्व से सम्पूर्ण परिवेश-समाज और राष्ट्र दिशाबोध प्राप्त करता है श्रौर ऐसे दिव्य-ललाम सुधीजनो के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हतु उनके प्रभिनन्दन-प्रतिनन्दन शिष्ट तथा कृतज्ञ समाज का प्राथमिक दायित्व है। जैसा कि श्राचार्य विद्यानन्द ने भी कहा है- “नहि कइतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति । 1- मच स्मूतिः, वाराणसो १६७१ ई. श्र. २ श्लोक १३६. 2- पच त॑त्रसूः कणापुखम्‌, वाराणसी २०११५ वि., पद्य €. ( ख )




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now