नीतिशास्त्र | Neetishastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हृदयकी पवित्रता : ईसाके जीवनका प्रभाव--वैराग्यवाद और सदाचार : ञश्नमिक जीवन : व्यावहारिक पक्ष; सद्‌रुण, विदव- -वन्धुत्व : ईसाई धर्म श्रद्धा और विश्वासका धर्म है । अध्याय १६ :. वुद्धिपरतावाद (परिद्ेष) पृष्ठ २६२-४०१ अवॉचीन उग्र चुद्धिपरतावाद--कांट जीवनी : जीवनमे नियमनिष्ठताका प्राधान्य : नीतिरास्रकी दार्यानिक प्ष्भूमि : नैतिक अनुभव : मनुष्य स्वशासित दैः स्शासित जीवनम भावनाके लिए खान नहीं है ; सुखवाद अनैतिक है : नैतिक आदेश--निरपेक्ष आदेश : शुभ संकर्प : कर्तव्य और प्रदृत्ति : कर्तव्य और पूर्ण संकब्प : सद्गुण और आनन्द : नैतिक नियम रूपात्मक दँ : आचरणविधिरयो । ं आलोचना नीतिवाक्य असन्तोपप्रद हैं : बाघध-नियमकी सीमाएँ : नैतिक सिद्धान्त-- केवल सार्वभौम अतः विषयहीन : भावनाका नैतिक मूस्य : भ्रान्तिपूर्णं मनोविज्ञान : सिद्धान्तमे अस्प्ता--भाव- 'नाएँ आत्म-सन्तोषका अङ्क : नैतिक जीवनमे कर्तव्यका अर्थं: वेराग्यवाद्‌ अपने-माप अपूर्णं : सुखवादी भूल : एकमात्र म्ेरणाको महत्व देना अनुचित है : सद्गुण जर आनन्द : कटके कटठोरतावादका व्यावहारिक मूस्य : निरपेक्ष नैतिक आदेशका सदे : इतिहासको बुद्धिपरतावादकी देन । अध्याय १७; सहजज्ञानवाद पृष्ठ ०२-४१५ संदजज्ञानवाद्‌ ओर अन्तर्वोध प्रवेश : सहजज्ञानवादका व्यापक अर्थं : प्रकृतिवा<ई तथा सहज- ज्ञानवाद्का एतिहासिक विवाद | अन्तर्वोधका व्यापक प्रयोग अन्त्वांध--उसका अर्थं : कानून : धर्म ; सुखवाद ; प्रचलित




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