नागमणि | Nagamani
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“दहर से कुछ लनाहो तो मुभेवतादो)* - `.
“अपने रंग और कागज देख लीजिए ) कम हौं तो. लेते
आइएगा |” । ति ।
“अभी पीछे मंगवाए थे--कम से कम छः महीने जरूरत नहीं
पड़ेगी ।” |
“मुके काफी काम समा जाइए ! पीले करती रहूंगी ।” -
“जितनी भी मेहनत करोगी कम है 1”
कुमार अलका से बातें भी कर रहा था और सुठकेस में कपड़े
भी संभाल रहा था । |
“मैं तहा दूं कपड़े ठीक से ? नहीं तो सारे सूटकेस में नहीं
आगे 1 |
“अच्छा, तुम ये कपड़े तहाओ। तब तक मैं अपनी पैंट ले आऊं ।
कल प्रैस के लिए दी थी ।”
“इसमें कुछ मैले कपड़े भी पड़े हुए हैं । इन्हें धो डालूं ? दो घण्टे
में सुख जाएंगे ।”'
“रहने दो ! मैं हर से धुलवा लूंगा ।””
“पर गाड़ी तो दुपहर में छूटेगी न ? अभी काफी देर है।””
“अच्छा धो डालो'””। पर तुम खुद क्यों धो रही हो ! अभी
हरिया आएगा, उससे घुलवा लेना ।”'
अलका ने कोई जवाब न दिया । कुमार पैंट लेने के लिए चल
दिया ।. .
धोबी पेश का आस-पास कोई आदमी नहीं था । कुमार ने बैज-
नाथ को जाती सड़क पर चाय की दुकान वाले पहाड़िये को शहर से
लोहे की प्रैस ला दी थी । वही समय-असमय कुमार के कपड़े घोकर
उत्तपर प्रैंस कर दिया करता था । कल जब कुमार ने वहां अपनी पैंट
दी थी तो उसे शहर जाने का खयाल तक न था ! अव जब वह् पैट लेने
के लिए गया तो पैण्ट धुल चुकी थी, पर उसी तरह सिलवटों-स हित
पड़ी हुई थी । कोयले हृवाते और प्रैस गर्म करते हुए कुछ देर हो गई ।
इसलिए कुमार जब पैंट लेकर वापिस आया तो अलका ते उसके मेले
कपड़े धोकर सूखने फैला दिए थे ।
0
User Reviews
No Reviews | Add Yours...