नागमणि | Nagamani

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Nagamani  by अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“दहर से कुछ लनाहो तो मुभेवतादो)* - `. “अपने रंग और कागज देख लीजिए ) कम हौं तो. लेते आइएगा |” । ति । “अभी पीछे मंगवाए थे--कम से कम छः महीने जरूरत नहीं पड़ेगी ।” | “मुके काफी काम समा जाइए ! पीले करती रहूंगी ।” - “जितनी भी मेहनत करोगी कम है 1” कुमार अलका से बातें भी कर रहा था और सुठकेस में कपड़े भी संभाल रहा था । | “मैं तहा दूं कपड़े ठीक से ? नहीं तो सारे सूटकेस में नहीं आगे 1 | “अच्छा, तुम ये कपड़े तहाओ। तब तक मैं अपनी पैंट ले आऊं । कल प्रैस के लिए दी थी ।” “इसमें कुछ मैले कपड़े भी पड़े हुए हैं । इन्हें धो डालूं ? दो घण्टे में सुख जाएंगे ।”' “रहने दो ! मैं हर से धुलवा लूंगा ।”” “पर गाड़ी तो दुपहर में छूटेगी न ? अभी काफी देर है।”” “अच्छा धो डालो'””। पर तुम खुद क्यों धो रही हो ! अभी हरिया आएगा, उससे घुलवा लेना ।”' अलका ने कोई जवाब न दिया । कुमार पैंट लेने के लिए चल दिया ।. . धोबी पेश का आस-पास कोई आदमी नहीं था । कुमार ने बैज- नाथ को जाती सड़क पर चाय की दुकान वाले पहाड़िये को शहर से लोहे की प्रैस ला दी थी । वही समय-असमय कुमार के कपड़े घोकर उत्तपर प्रैंस कर दिया करता था । कल जब कुमार ने वहां अपनी पैंट दी थी तो उसे शहर जाने का खयाल तक न था ! अव जब वह्‌ पैट लेने के लिए गया तो पैण्ट धुल चुकी थी, पर उसी तरह सिलवटों-स हित पड़ी हुई थी । कोयले हृवाते और प्रैस गर्म करते हुए कुछ देर हो गई । इसलिए कुमार जब पैंट लेकर वापिस आया तो अलका ते उसके मेले कपड़े धोकर सूखने फैला दिए थे । 0




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