बेंजामिन फ्रेंकलिन का जीवन चरित्र | Benjamin Phrankalin Ka Jivan Charitra

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Benjamin Phrankalin Ka Jivan Charitra by लक्ष्मी सहाय माथुर - Lakshmi Sahaya Mathur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ५ 1 फ्रेंकलिन को समाप्त कर के । किंतु, दुभाग्य से इसका कायं 'अपूण ही रहा कि उसका देददान्त हो गया शरोर बीच में ही-- '्रादर्श मुनि' का काय्य हाथ में ले लिया जिसे उसके प्रकाशक महाशय की श्ञातुरता के कारण पहिले समाप्त कर देना पढ़ा । श्रीमान्‌ सेठ लालचन्द्‌ जी साहब सटी तथा मध्य भारत हिन्दी- साहित्य-समिति इन्दौर के मत्री श्रीमान्‌ डाक्टर सरयू प्रसाद्‌ जी मड़ोदय की कृपा से बहिन का देहान्त होते ही. इस के प्रकाशित दोनेका अवसर झाया। में उपयंक्त उभय सज्जनो का कृतज्ञ हूं जिनकी कपा से यष पुस्तक श्राज हिन्दी -संसार को भेट की जा रही है । फ्रेंकलिन का जीवन एक महत्त्व का जीवन है । व बड़े दीन कुटम्ब में उत्पन्न हुआ था। किंतु बढ़ते २ यहाँ तक बढ़ा और ऐसे उच्च पदों पर पहुँच गया जहां राजकुल, वालों को छोड़ कर दूसरों का पहुँचना असम्भव है । बह देश-सेवक के साथ ही साथ अपने देश का शासक भी हो गया है । किंतु, उच्च पद पाने का नतो कभी उस अभिमान हृश्रा श्र न इस के लिये वह क्रिसी का ऋणी ही था । वह यहाँ तक स्वतंत्र भाव वाला था कि यदि किसी की सद्दायता की श्येता के लिये उसे पत्ती श्रास्मा को दबाना पड़ तो वह श्रपनी हानि स्वीकार कर लेताथा किंतु, किसी से कमी कोई य।चना नहीं करता था. । उसकी घुद्धि बढ़ी तीघ्र थी । वह श्राजन्म जिन्यादेवी का उपासक रहा । उसने केवल श्चपने ही परिश्रम शौर पराक्रम से असाधारण योग्यता प्राप्त की । उसके आदि अन्त की दशा का मिलान करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उद्योग थर सच्ची लगन से दरिद्र मनुष्य भी धनाढ्य हो (1 । म वहू जैसा विद्वान था, वसा ही स्वदेश-हितषी भी धाः। इसी कारण उसकी प्रतिष्ठा इतनी बढ़ी कि राज सम्बरन्यी कार्य्यो मं छयष्धी सम्मति ली जामे लगी चौर बड़ी से बड़ी सभार्भोमं उस को कुरसी मिलने लगी ।




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