हिंदी साहित्य सम्मलेन | Hindi Sahitya Sammelan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 हमारे झरोर को रदना {अन्वय हैं; परि अन्तर चहुत्त हो थी रे-घीरे पढ़ाना या घटाना होता हूँ तो पंच (र ) से काम लिया जाता हूं; जहाँ से साफ साफ दीखता हैं उसी अंतर पर घस्तुताल को रखते हूं । बड़ी नली के भीतर एक नली और होती हूँ; इसी में चकुताल लगा होता है । इस नलो को उपर सरकाने से चुत स्तर बस्तुताल काप यन्तर अविक किप जा सकता हैँ । प्रकादा (1.४) रौ किरणें झोझे (फ1717007) पर से उचट कर मंच फे चरि मे से होती हुई वस्तु पर पड़ती हूँ । वस्तु से उच्च कर चस्तुताल आर नली मौर चलूताल मं होती हई परोक्षङू को चु मं पहुचतो हं । शीशेसे प्रकादा कम गप अधिक किया जा सकता है इस यन्न की सहायता से बैज्ञातिको (5८[<घ. (४१४) नें अनेक प्रकार की सुषम (फततएप6) चनस्पतियों को देखा हैं जिनको साधारण मनुष्यों ने न कभी देखा और न सुना । साधारण मनुष्यों को सो इस वात के सुनने से भी बडा आश्चर्य होता है कि जीवधारी इतने सुदम भी हो सकते है जो अलो सेन दिशा दे; परन्तु हस विषय मेँ सन्देह करना व्यर्थ हूँ यदि आप इस बघंत्र के द्वारा चस्तुओ कोौदेखना जानतो ननको भी इस चात का पूर्णं विश्वास हो जायगा । जिस प्रकार वनस्पतिवर्ग में अनेक प्रकार के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे व्यक्ति हैं. उसी प्रकार प्राणिवर्ग में भी जिन्न-भिघन पकार के बड़े से बडे और छोटे से छोटे च्पक्ति हूं । बड-चड़े प्राणी ऐसे जैसे कि हाथी, डेट, वा समुद्र में रहने बाली ह्लेल (५४11८) मछली, मनुप्य, बानर, कबूतर जादि, छोटे-छोटे ऐसे जैसे कि मकसी, मच्छर, जू, चीटी सादि । प्राणी इनसे भौ छोटे-छोटे होते दै ; ये बहूधा जल मे रहते हं मौर आंसो से केवल एक बिन्दू जनं देष पडते हं यदि जौर देख भाल की जावे तो ज्ञात होता हैं कि संख्य भरणी




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