महादेवी का विवेचनात्मक गद्य | Mahadevi Ka Vivechnatmak Gadhy

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mahadevi Ka Vivechnatmak Gadhy by श्री महादेवी वर्मा - Shri Mahadevi Verma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महादेवी वर्मा - Mahadevi Verma

Add Infomation AboutMahadevi Verma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
काब्य-कला मुहू्ते श्रा उपरिथित होते हैं फ्िनमें बह पर्वत के समकत्त खड़ी होकर ही सफल हो सकती है शरीर गुरुतम वस्तु के लिए भी ऐसे लघु चण श्र पहुँचते हैं जिनमें बह छाटे तू के साथ वेठ कर ही कृतार्थ बन सकती हे जीवन का जो स्पर्श विकास के लिए अपेक्षित है उसे पाने के उपरान्त छोटा बड़ा लघु गुरु सुग्दर विरूप श्राकर्षक मयानक कुछ भी कलाजगत्‌ से बष्टिष्कृव नहीं किया जाता | उजले कमलों की चादर जैसी न्वॉदनी से छुस्कसती हुई विभावरी श्रमिराम है पर श्रैंघेरे के स्तर पर स्तर ओढ़कर बिराटू बनी हुई काली रजनी थी कम सुन्दर नहीं | फूलों के बोभा से झुक्र शुक पडनेवाली लता कमल है पर शून्य नीलिमा की. श्रार विस्मित बालक-सा ताकनेवाला टँठ भी कम सुकुमार नहीं । श्रविरत जलदान से प्रथ्वी को केंपा देनेवाला बादल ऊँचा है पर एक बूँद आँसू के मार से नत श्रौर कॉम्पत तृण भी कम उन्नत नहीं । गुलाब के रंग श्र नवनीत की कोमलता में कंकाल छिंपाये हुए रूपसी कमनीय है पर भुरियों में जीवन का विशान लिखे हुए घ्रुद्ध भी कम श्राक्पक सही । चाह्य जीवन की कठोरता सँंघर् जय-पशजय सब मूल्यवान्‌ हैं पर श्रन्तजेगत्‌ की कल्पना स्वप्न भावना श्रादि भी कम श्रसमोल नहीं | उपयोग की कला श्रौर सौन्दर्य की कला के लेकर बहुत से विवाद सम्भव दोते रहे परन्दु यह भेद मूलतः एक दूसरे से चुत दूरी पर. नहीं ठह्हरते | कला शब्द से किसी निर्मित पूर्ण स्वर का ही बोध होता है. श्रौर कोई भी निर्माण श्रपनी श्रस्तिम स्थिति में जितना सीसित है श्ारम्भ में ६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now