साहित्य - शिक्षा | Sahitya - Shiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्िन्नानके प्रश्नोकी भी प्रिवेचना की जा सके और यह सम्मेलन इस
सचाईकी स्पष्ट स्वीकृति है ।
भाषा बोल-चालको भी होती रै मोर लिखनेकी भी । बोल-चालकी
भाषा तो मीर अम्मन और लल्इलालके ज़मानेमें भी मीजद थी; पर
उन्होंने जिस भाषाकी दागृ-बेल डाली वह लिखनेकी भाषा थी और
वही साहित्य है | घोल-चालते हम अपने कुरीवके लोगोपर श्पने
विचार प्रकट करने है,--दपने हर्प-गोंकके भावोका चित्र खींचते
है । साहित्यकार यही काम लेखनी-द्वारा करता है । हो, उसके
शरोनाच्नाकी परिमि वहत तरिप्वृत होती ह शरोर, श्रगर उसके त्रयानमे
सचा दै तो दाताच्ियो श्रौर युगोतक उसकी रचनाएँ हृदयेंको
प्रभावित करती रहती है |
परंतु, मेरा श्रमिप्राय यह नहीं है कि जो कुछ लिख दिया जाय,
वह सबका सब साहित्य है । साहित्य उसी रचनाको कहेंगे जिसमें
कोई सचाई प्रकट की गई हो, जिसकी भाषा प्रीढ़, परिमार्जित और
सुन्दर हो, और जिसमे दिल और विमागृपर असर डालनेका गुण
हो । और साहित्यमें यदद गुण पूर्णरूपसे उसी त्रस्यामि उत्पन्न होता
है, जब उसमे जीवनकी सचाइयों और शलुभूतियों व्यक्त की गई
हों । तिलिस्माती कहानियों, भूत-प्रेतकी कथाश्रों श्रौर प्रेम-वियोगके
ाख्यानोंसे किसी जमानेमे हम भले ही प्रभावित हुए हो, पर; शव
उनमें हमारे लिए बहुत कम दिलचस्पी है । इसमें सन्देह नहीं कि
मानव-प्रक्कतिका मर्मज्ञ साहित्यकार राजकुमारोकी प्रेम-गाथाश्ों और
तिलिस्माती कहानियोमे भी जीवनकी सचाइयों वर्णन कर सकता है,
और सौन्दर्यकी साष्टि कर सकता है; परन्तु, इससे भी इस स॒त्यकी
पुष्टि ही होती है कि सहित्यमे प्रभाव उत्पन करनेके लिए यह
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