साहित्य - शिक्षा | Sahitya - Shiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्िन्नानके प्रश्नोकी भी प्रिवेचना की जा सके और यह सम्मेलन इस सचाईकी स्पष्ट स्वीकृति है । भाषा बोल-चालको भी होती रै मोर लिखनेकी भी । बोल-चालकी भाषा तो मीर अम्मन और लल्इलालके ज़मानेमें भी मीजद थी; पर उन्होंने जिस भाषाकी दागृ-बेल डाली वह लिखनेकी भाषा थी और वही साहित्य है | घोल-चालते हम अपने कुरीवके लोगोपर श्पने विचार प्रकट करने है,--दपने हर्प-गोंकके भावोका चित्र खींचते है । साहित्यकार यही काम लेखनी-द्वारा करता है । हो, उसके शरोनाच्नाकी परिमि वहत तरिप्वृत होती ह शरोर, श्रगर उसके त्रयानमे सचा दै तो दाताच्ियो श्रौर युगोतक उसकी रचनाएँ हृदयेंको प्रभावित करती रहती है | परंतु, मेरा श्रमिप्राय यह नहीं है कि जो कुछ लिख दिया जाय, वह सबका सब साहित्य है । साहित्य उसी रचनाको कहेंगे जिसमें कोई सचाई प्रकट की गई हो, जिसकी भाषा प्रीढ़, परिमार्जित और सुन्दर हो, और जिसमे दिल और विमागृपर असर डालनेका गुण हो । और साहित्यमें यदद गुण पूर्णरूपसे उसी त्रस्यामि उत्पन्न होता है, जब उसमे जीवनकी सचाइयों और शलुभूतियों व्यक्त की गई हों । तिलिस्माती कहानियों, भूत-प्रेतकी कथाश्रों श्रौर प्रेम-वियोगके ाख्यानोंसे किसी जमानेमे हम भले ही प्रभावित हुए हो, पर; शव उनमें हमारे लिए बहुत कम दिलचस्पी है । इसमें सन्देह नहीं कि मानव-प्रक्कतिका मर्मज्ञ साहित्यकार राजकुमारोकी प्रेम-गाथाश्ों और तिलिस्माती कहानियोमे भी जीवनकी सचाइयों वर्णन कर सकता है, और सौन्दर्यकी साष्टि कर सकता है; परन्तु, इससे भी इस स॒त्यकी पुष्टि ही होती है कि सहित्यमे प्रभाव उत्पन करनेके लिए यह




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