तुलसी - काव्य - मीमांसा | Tulasi - Kavya - Meemansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१. अध्ययन-सामग्री तुलसीदास-विषयक अध्ययन तत््वत उनकी कृतियो पर ही आश्रित है। जीवनी- सववी बाह्य सामग्री आनूुषगिक खूप से उपयोगी है । किसी कवि के जीवनवृत्त और उसके व्यक्तित्व-निर्मायक तत्त्वो के परिज्ञान से उसकी काव्य-कृतियो को विधिवत्‌ समभने-सम- माने मे पर्याप्त सहायता मिलती है । कवि की प्रवृत्तियाँ उसके व्यक्तिगत अनुभवो एव सुखदु खात्मक अनुभूतियो के सस्कारो से सचालित होती हैं । उसका दृष्टिकोण उसके पेतुक गुणो, पारिवारिक जीवन, शिक्षा-दीक्ला, स्वाघ्याय-देयाटन, सामाजिक स्थिति आदि के सकलित प्रमःवो से निर्मित होता है। काव्य मे कवि कै ग्यवितत्व, दृष्टिकोण ओौर प्रवेत्तियो का व्यक्ताव्यक्त रूप से प्रतिफलन अनिनायं है । जिस प्रकार विब से अभिन्न द्रप्टा उसके प्रतिधिब को अनायास पहचान लेता है, उसी प्रकार कर्ता के समग्र व्यक्तित्व का ज्ञाता उसकी कृति के ममं को उसके यथाथं परिप्रेक्ष्य मे ग्रहण कर सकने मे समर्थ होता है। इसी- लिए आधुनिक साहित्यालोचन में जीवनी मूलक समी क्षा को इतना महत्त्व दिया जाता है । अन्य भारतीय प्राचीन महाकंवियों कीं भाँति तुलसीदास का पूणं जीवनचरित अज्ञात है । यद्यपि एकाघ अनुसघायको का दावा है कि उन्होने तुलसी के सपुणं जीवन- चरित का अन्वेषण कर लिया है और जो कुख कष्टा है वह्‌ सर्वाश मे प्रत्याख्यान के परे है। परत, तटस्थ आलोचक को उनके समी तकं अकाट्य प्रतीत नही होते । बीसवी शताब्दी के विगत कुछ शाब्दो मे तुलसीदास के जीवन-चरित से सवध रखने वाली प्रचुर सामग्री प्रफ़ाशमेश्रायी है। उसकी प्रामाणिकता कै विषय मे विशेषज्ञ विद्वान तीत्र मतभेद रखते ह । कवि के जीवन-वृत्त के विषय मे जौ भी वहिस्साक्ष्य उपलब्ध ह वहु असदिग्ध नही है। उसकी रचनागो मे आत्मकथात्मक उक्तियो के रूप मे जो अतस्साक्ष्य मिलता है वह्‌ अपर्याप्त है, ओर उसका भी अधिकाश भिन्न प्रकार से व्याख्येय है । ऐसी स्थिति मे इन सब सामग्रियों के माघार पर तुलसीदास की जीवनी की कामचलाऊ रूपरेखा ही प्रस्तुत को जा सकती है । तुलसीदास के जीवन-वृत्त की सामग्री सूलत दो रूपों मे पायी जाती है उतस्साक्ष्य गौर बहिरस्पाक्षय कवि की अनेक कृत्तियो मे यत्र-तत्र आत्मचरितात्मक उल्लेख निलते ह जिनमे उसके जीवन पर किचित्‌ प्रकाश पडता है 1 अत्यत न्यून होने पर भी कवि की जीवनी का तततवत प्रामाणिक आवार वही है। दुसरो ने तुलसी का जीवन-चरित निखा है । तथाकथित जीवनचरित लिखनेवालो मे पाचके नाम विशेष रूप से उत्लेख- सीय हैं रघुबरदास, वेणीमाधवदास, कृष्णदत्त मिश्र, अविनाधराय और तुलसी साहब । प्रथम दो ने अपने को तुलसीदास का शिष्य कहा है। तीसरे ने अपने को उनका गुरु-भाई




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