मल्लवधू | Mallvadhu
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६: हूं. ५
होगा ? किस प्रकार हम उन्हें अपने पड़ोस से हट सकेगे ?
गणपति प्रभाकर ने मल्लवीरों को सम्बोधित करते हुए आवेश के
स्वर में कहां । .
“आयं ! हमने सोच लिया है । किरातों को अपने पड़ोस से
भगाकर ही हम शान्त होंगे । यदि हमने ऐसा नहीं किया, तो
हमारे गणतन्त्र की स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रह सकती । पश्चिम
मे मयं, कोलिय ओर शाक्य गणतन्व स्थापितो चुकेहै। .
उनसे हमें किसी प्रकार का भय नहीं है । हमें तो अब पूर्व में ही `
किरातो से भिडना है । उन्हें मही के तटवर्त्ती प्रदेश से खदेड़कर
पवेतों की ओर भगा देना है और ऐसे व्यूह की रचना कर देनी
है कि फिर वे इधर बढ़ने का कभी साहस न कर सकें ।”” जय ने
प्रसन्नतापुर्वेक कहा ।
साधु, जय ! तुमने ठीक सोचा है । हमें मही के उस पार
भी अपने गणतन्त्र की सीमा बढ़ानी है ।” कुणाल ने अपनी
सहमति प्रकट करते हुए कहा ।
“नहीं, कुणाल ] मल्ल-गणतन्त्र की यह प्राकृतिक सीमा है ।
मही ओौर अनोमा दोनों ही हमारी राज्य-रेखाएँ हैं । इनका
उल्लंघन करना ठीक नहीं ।” गणपति ने कहा
“तो आयँ ! क्यों नहीं कुछ मल्लपुत्र मही-पार जाकर वहाँ
नवीन गणतन्त्र की स्थापना करें और किरातों से सदा के लिए
मल्ल-गणतन्त्र को बचाये 'रखें ।'”” जय ने कहा |
“हमें पूर्वं के हिसक पशुओं से युक्त वनो को काटनाभी
पड़ेगा ओर नये-नये नगरों एवं निगमो को बसाना होगा ।
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