मल्लवधू | Mallvadhu

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Mallvadhu by भिक्षु धर्मरक्षित - Bhikshu dharmrakshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६: हूं. ५ होगा ? किस प्रकार हम उन्हें अपने पड़ोस से हट सकेगे ? गणपति प्रभाकर ने मल्लवीरों को सम्बोधित करते हुए आवेश के स्वर में कहां । . “आयं ! हमने सोच लिया है । किरातों को अपने पड़ोस से भगाकर ही हम शान्त होंगे । यदि हमने ऐसा नहीं किया, तो हमारे गणतन्त्र की स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रह सकती । पश्चिम मे मयं, कोलिय ओर शाक्य गणतन्व स्थापितो चुकेहै। . उनसे हमें किसी प्रकार का भय नहीं है । हमें तो अब पूर्व में ही ` किरातो से भिडना है । उन्हें मही के तटवर्त्ती प्रदेश से खदेड़कर पवेतों की ओर भगा देना है और ऐसे व्यूह की रचना कर देनी है कि फिर वे इधर बढ़ने का कभी साहस न कर सकें ।”” जय ने प्रसन्नतापुर्वेक कहा । साधु, जय ! तुमने ठीक सोचा है । हमें मही के उस पार भी अपने गणतन्त्र की सीमा बढ़ानी है ।” कुणाल ने अपनी सहमति प्रकट करते हुए कहा । “नहीं, कुणाल ] मल्ल-गणतन्त्र की यह प्राकृतिक सीमा है । मही ओौर अनोमा दोनों ही हमारी राज्य-रेखाएँ हैं । इनका उल्लंघन करना ठीक नहीं ।” गणपति ने कहा “तो आयँ ! क्यों नहीं कुछ मल्लपुत्र मही-पार जाकर वहाँ नवीन गणतन्त्र की स्थापना करें और किरातों से सदा के लिए मल्ल-गणतन्त्र को बचाये 'रखें ।'”” जय ने कहा | “हमें पूर्वं के हिसक पशुओं से युक्त वनो को काटनाभी पड़ेगा ओर नये-नये नगरों एवं निगमो को बसाना होगा ।




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