महा भारत कालीन समाज | Maha Bharat Kalin Samaj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
660
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनुवादिका के
बो शम्ब
हिन्दी पाठकों के समक्ष श्री सुखमय मट्टाचार्य के बंगला प्रंथ 'महामारतेर
समाज' का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है। अपनी
प्रथम पुस्तक १२ बंगला श्रेष्ठ कहानियाँ' के प्रकादन के बाद मैं इस उलझन में थी
कि अब कौन सी पुस्तक हाथ मे लूँ। उपन्यास, कहानी की ओर कोई विदेष'
झुकाब न था और कोई ठोस कार्य करना चाहती थी। मेरे पतिदेव ने पंडितजी
की इस पुस्तक के अनुवाद का आग्रह करते हुए कहा कि इस अनुवाद के प्रकाशन
से हिन्दी भाषा फी एकं बडी कमी पुरी हो जायेगी ।
मुझे संदेह था कि मैं लेखक व पाठकों के साथ न्याय कर पाऊँगी या नही ।
इस उलझन से छुटकारा दिलाया हिन्दी जगत के देदीप्यमान तरुण लेखक स्वर्गीय
डा० रागेय' राधव ने, जो अपने जीवन के अंतिम काल में अपने असाध्य रोग का
उपचार कराने बम्बर आये थे गौर कुछ काल के लिए हमारे साथ ठहरे थे। यह
अनुवाद उन्ही की पुष्य स्मृति को समपित है। उनकी दी हुई प्रेरणा आज भी
निरंतर व अबाघ कार्य के लिए प्रेरित करती रहती है।
किसी भाषा की किसी पुस्तक को अनुवाद के लिए हाथ में लेने पर अनुवादक
का कर्तब्य हो जाता है कि वह लेखक और पाठक के साथ पूरा न्याय करे। मैंने
इस अनुवाद मे पूरा प्रयत्न किया है कि लेखक को यह महसूस न हो कि जो कुछ वह्
कहना चाहते थे, उसे मैं अच्छी तरह व्यक्त नहीं कर पाई और पाठक कही इससे
ऊब कर इसे ताक पर उठाकर न रख दें । अनुवाद में बहुत से दाब्द ऐसे हैं जो पाठकों
को कुछ अप्रचलित व नये लगेगे; लेकिन मुझे बाध्य होकर वे शब्द उसी प्रकार
रखने पड़े है, जैसे कि मूल पुस्तक मे थे। उन शब्दौ के सरक पर्मयायवाची
दाब्द ढूढने की मैंने बहुत कोदिद की परन्तु समानाथेक शब्द म मिलने पर मैंने
उन्हें ज्यों का त्यों रखना उचित समझा । एक चीज पाठकों के समक्ष और आयेगी
वह है पुनरावृत्ति । लेकिन जानते हुए भी मुझे ये पुनरावृत्तियाँ ज्यों की त्यो रखनी
पड़ी हैं। पुस्तक के विषय को देखते हुए और अनुवादक होने के नाते मुझे यह अधि-
कार नहीं था कि मैं अपनी ओर से कुछ घटा या बढ़ा स्कूँ।
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