तरहदार लौंडी | Tarahdar Laundi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
215
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
शमीम हनफ़ी - Shamim Hanafi
No Information available about शमीम हनफ़ी - Shamim Hanafi
श्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee
No Information available about श्री कृष्णदास जी - Shree Krishndas Jee
सज्जाद हुसैन - Sajjad Husain
No Information available about सज्जाद हुसैन - Sajjad Husain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तरहदार लौंडी [ १७
“हुजुर !” शेख़ दाँत निकाल कर बोले; “बेद्यदबाना माफ़; आपके
शहर की औरतें ऐसी नहीं, वह कहीं और फूहड़ घराने की होंगी । झ्रपने
शहर की बेगमात; नामे ख़ुदा, कमसिनी ही से बड़े पढ़े लिखों के कान
काटती है; श्रौर फिर यहं भौ जाने दीजिये, श्रगर कोई बेवक़ूफ़ अच्छी
बाषक्देतोक्यान मानना चाहिये £
“यह तो सरकारकी हठधर्मी है! भजा नेरोखकीदहयँमे दँ
मिलाई, “बात तो उन्होंने ठीक कही होगी; क्योकि वह दै निहायत
समदार, गम्भीर श्रौर साहब बेटी किसकी हैं ! अच्छा तो मैं कहता
हूँ इसमें हज ही क्या है ? श्रगर दो एक बच्चे परवरिश को मँगा दिये
जार्येतो काम काज भी करेंगे, माशाश्ल्लाह सकीना बेगम हैं, मुन्ने
साहब हैं । उनके साथ खेलेंगे, उनकी ख़िदमत करेगे । उनकी भी परव-
रिश हो जायगी श्रौर श्राख़िर काम मी करेगे!
“हुज़ुर बहुत नहीं ।” मिज़ां ने राय दी; “एक तीन लड़के; एक
तो लड़की सककू के लिये मुन्नी-सुन्नी, दूसरे एक लड़का मुनने साहब के
वास्ते और एक लड़की ज़रा दोशियार बेगम साहब के लिये 1”
“ऐ वाह !” साहब ख़ाना ने मुँह बनाया, “तो सारा ख़ेरात ख़ाना
बन्दे ही के घर में भरती करा दीजियेगा !””
“हाँ, हाँ; हुजूर !” शेख़ बोले; “इसमें हर्ज ही कया है ! भूखों मरते
हैं कमबख्त परवरिश पाएंगे; बड़े होंगे, होश सम्भालेंगे; तमीज़ के; सूक
बू के हो जाएँगे, सब तरह का श्राराम देंगे । नौकर लाख बरस का
हो तब भी अलग है । श्र यह तो हर हाल में इुज़ूर के कदमो से लगे
रहेंगे । श्र श्रच्छे बुरे सब में होते हैं, अगर नौकर पर ख़फ़ा हुए, लो
साहब उनको नौकरी नहीं मन्ज़ूर है । चलते फिरते नज़र झाये । अपना
नौकर मिजाज से नावाक़िफ़, जब बरसों सिखाश्रो तव सभ बुः श्ये,
आराम दे सके सो वह भी सौ भें एक ! आर इनको ख़फ़ा होना क्या
मार तक लीजिये, मगर यह दर छोड़ कहाँ जाएँगे १”...
त० ल०--र
User Reviews
No Reviews | Add Yours...