चतुरंग | Chaturang

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Chaturang by मोहनलाल - Mohanlalरवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravendranath Thakur

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मोहनलाल - Mohanlal

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बड़े चाचा १९ मिथ्या कौ सहायता से भी इनका उद्धार करने की गुंजाइश नहीं रह गई थी । जो बात सबसे ज्यादा खटब्ी, उसे ही यहां कहता हू ! जगमोदहन के नास्तिकघर्म का एक प्रधान अंग था छोगों की भलाई करना । इस भलाई करने में भन्य रख चाहे जो दो, एकः प्रधान रस यह था कि नास्तिक आदमी जब सचमुच ही रोगो को भलाई करने जाता है, तो उसमें ख़ालिस नुक़्सानी छोड़ और कुछ भी हाथ नहीं आता--न पुण्य, न पुरस्कार, न किसी देवता अथवा शाख्र की बख्शयीश का विज्ञापन भौर न उनकी क्रोध से रंगी भांखें। अगर कोई पूछता, अधिक से अधिक लोगों के अधिक से अधिक खुखसाधन में आपकी अपनी रारज़ आख़िर कौनसी है, तो वे कहते, कोई ग़रज नहीं, यही मेरी सबसे बड़ी ग़रज है ।--शयीश से कहते, देख बेटा, हम लोग नास्तिक है, इसी गौर को उखा रखने के लिये हमे वि्छृुख भिष्कटंक-निर्म्मरु रहना होगा । हम भौर कुछ भी नहीं मानते, इसीसे अपने 'विश्वासों को मानने पर हमारा इतना ज़ोर है। अधिक से अधिक लोगों के अधिक से अधिक खुखसाधन में उनका प्रभान्‌ चेखा था शचीश । सुदब्ले में चमड़े की कुछ बड़ी-बड़ी भाइती गोदामें थीं । चहां के सब मुसलमान व्यापाश्यिं और चमारों को लेकर चाचा-भतीजञ कुछ शस प्रकार घोर हिताजुष्ठान में जुट गए कि दृर्मिहन के मस्तक का चंदन-ठीका अधि-शिखा की तरह उनके भगज्‌ मे छंकाकांड घटित करने का उपक्रम करने छगा। बड़े भाष के निकट शास्त्र अथवा आचार की दुहाई दमे से फट उद्या होगा, इस कारण उन्होंने पेतुक सम्पत्ति की बेजा फिजूलस़्ची की




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