जैन बौद्ध तत्वज्ञान | Jain Bauddha Tatvagyan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद - Brahmachari Sital Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२
(३) प्० (४८ सीाइसुत्त ( अ० नि ८, १,२,२)-
““एक समय भगवान बेशालीमें थे....उस समय निगठों ( जनों
जहां निंगठ नाथपुत्त थे वहां गया |
सिंह ! तुम्हारा कुछ दीघकाठसे निमेठोंके लिये प्याउकी तरह
रहा है । उनके जानेपर पिंड न देना ऐसा सतत समझना |
(४) प्र २२८ चूख्दुःख खन्ध सु्त (म०नि० १: २: ४)
“एक समय मैं राजगृहके गृद्धकूट पवतपर विहार करता था
उस समय बहुतसे निंगठ ( जैन साधु ) ऋषिगिरिकी काल शिलापर
खड़े रहनेका ब्रत ले तीघ्र वेदना झेल रहे थे ।
निशठो । तुम क्यो वेदना झेल रहे हो? तत्र उन निगंठोंने कहा-
“८ निगठ नातपत्त (जन तीर्थकर महावीर ) सर्वज्ञष, सर्वदर्शी, आप
अखिल ज्ञान दशनको जानते हँ । चलते, खड़े, सोते, जागते, सदा
निरंतर (उनको) ज्ञान दान उपस्थित रहता है ।
(९) पू० २६५-पहासुकुछुशाषेि-सु्त-( म० नि० २: ३:७ |
““राजगृहमें वर्षावासके लिये गाए हैं । [निगंठ नाथ-पुत्त ।”
(६) पर २८० चूछ सुकुलदायि सुच-म० नि० २-३-९,)
कौन हैं-सबज्ञ, सर्वेदर्शी, निखिलज्ञानसम्पन्न होनेका दावा करते
हैं । मते-निर्गठनाथपुत्त ।
(७) प्र° ३४१ देवदहसुत्त (म० नि° ३: १: १)
उन निग॑र्लने मुद्ध कहा ““ निगंठनातपुत्त सर्वज्ञ सर्वेदर्शी अखिल
ज्ञानदरनको जानते ई | ??
८) प्र° ४४५-उपाट्घ्वचत-(म० नि० २: २:६)
उस समय निगंठ नातपुत्त निगंठों ( जन साधुओं ) की बड़ी परि-
'बदूके साथ नाठंदामें विहार करते थे |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...