सन्तुलित गो पालन | Santulit Go Palan

Santulit Go Palan by श्रीमती चन्द्रावती - Shrimati Chandrawati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आजादी चाहिये । हरी घास उन्हें खूब मिलें । खल्‍ली, दलहन, नमक इत्यादि की पुरी मात्रा उनके भोजन में रहे । उनका बथान साफ़ सथरा रहे । उन्हें बराबर स्नान कराया जाये। उनके गोबर मूत्र, मलः का सदुपयोग खेती मं हो । इस तरह गोवंश से खेती ओर खेती से गोवंश की हमेशा वृद्धि होती रहे तो भारत के नरनारी अधोगति के रास्ते में न गिरकर ऊपर की ओर उठेंगे । देखने में भले ही जान पड़े कि बछड़े अपनी अपनी माँ का दूध पी जाते हं इसलिये गायों की खुराक का ख़चं घाटे में जाता हे पर अपनी तृप्ति भर दूध पीकर बछड़े बछड़ी का दारीर इतना पुष्ट हो जाता हे कि छोटी-छोटी उम्र में याने डेढ़ या दो साल में बछड़ियाँ गर्भधारण करने योग्य हो जाती हें। और बछड़े साड़ या बल के काम में लाये जा सकते हं। ऐसे बछड़ों का रनाय्‌ पुष्ट हो जाता है। इसी तरह अगर अच्छी नस्ल के साडो के साथ अच्छी अच्छी गायें गाभिन हों और उन्हें गोमाता का पूरा दूध मिलें तो दो ही चार पुरत गायों को नस्ल सुधारने के लिये पर्याप्त होगा जिसका मतलब है ज्यादा से ज्यादा १५ साट का समय । गोसेवा प्रत्यक्ष रूप से मनष्य के जीवन की आवश्यकताय पुरी करती हें ऊपर बताया जा चका ह्‌ कि सच्ची गोसंवा में हिसा वृत्ति को रोकनेवाली प्रवत्ति हें । मनुष्य शरीर की पुष्टि जन्म से प्रारम्भ होकर मृत्युशय्या तक गाय के दूध से होती हे । डाक्टरों ने गाय के दूध को मनुष्य जाति का पूणे भोजन बतलाया हे हिन्दुस्तान कृषिप्रधान देश है । गोसेवा और भमिसेवा का मेल बैठता है । भमिसेवा से गो को आहार मिलता है और गोसेवा से भमि को आहार मिलता है । इस तरह गो ओर भमि में परस्पर भावयन्त: का सम्बन्ध प्रकृति ने जोड़ दिया हे इसमें मनष्य यदि निमित मात्र हो जायें,चेतन्य होकर याने समभकबभ कर बद्धिपूनक गो और भमि की सेवा करें और दोनों का समन्वय करे तो उसे खाना और कपड़ा भी सब आसानी से मिल जा सकता है । अन्न तो खेतों मे उपजेगा ही साथ ही खेतो मं कपास उपजाकर उसके विनौटे निकार कर फिर रुई को धन कर पूनी बनाकर मजबत सूत काता जाये तो हर.मनुष्य का आलस्य दूर होगा ओर उसकं कपड़े भी तयार हो जायेगे । साथ ही अनायास बिनौला भी पेदा हो जायगा जो गाय की अच्छी से अच्छी खुराक हु। वेसी ही बात तेल, धान और गुड़ इत्यादि के ग्रामोद्योगों की भी हे । तेल की पेराइपुबेल करेंगे । मनष्य को वनस्पतिजन्य वसा या चिकनाइ तेलरूप मे मिलेगी । गाय बेल को खल्टी मिखेगी। गेहूं, धान वगेरह में दलने में कूटने से भी गाय बेल की खुराक पंदा होगी । ऐसी ही बात दूसरें ग्रामोद्योगों के बार मं भी है । इस तरह देखा जाये तो गोसेवा, भमिसेवा और ग्रामोद्योगों की एंक श्रृंखला बँध जाती है। अगर मनष्य अपने तन, मन, धन, बद्धि और आत्मा को इन कामों में लगा दे तो रामराज्य कल्पना की वस्त न होकर मतिमान होकर इस पृथ्वी पर विराजेगा। भगवान्‌ से प्राथना ह कि वह भारत जसे कृषिप्रधान और गोप्रधान देश के लोगों को सद्बद्धि दे और वे समभ बभ कर सच्ची गोसेवा के माग में प्रवत्त हों । प्रस्तत पस्तक, गोसेवा के अनभवों का एक संकलन हे । पस्तक के चार भाग किये गये हें याने प्रतिपालन, प्रजनन विज्ञान, पोषण और चिकित्सा । अनभव की अनेक बातों का परतक मं समावेश हु, इसलिये अमली दायरें में भी गोसेवकों के लिये इस पुस्तक कं उपयोगी होने की पूरी सम्भावना है । पाठकों ने अगर इस पुस्तक को अपनाया तो मुभे आदा। हे कि पुस्तक रचयिता श्री चन्द्रावती जी इसो तरह के और भो सफल प्रयास करेंगी । नई दिल्‍ली १८-६-४६ राजेन्द्र प्रसाद १०




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