विज्ञान | Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
216 MB
कुल पष्ठ :
717
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ विज्ञान, छक्र धर, १९३८
कलेदसा
में हम जब गीले कपनें फैला देते हैं
। षुः तु बरसातम
कि सूखसेमें अदा समय सरलता । कया आपने
क्यों होता है ? बात यह
कि हवा भी. पानी पीली है, किन्तु इतनी स्वतंत्र
नहीं कि जिंसना पानी कहि पीके हस संब इसे
लापक्रमसे बडी सहायना सिलती हैं | लापक्रमके बढ मे से
इसकी ध्यास बदु जाती है और कम हो. जानेसे कम |
मान लीजिये @ नापक्रम ८५ * पर द्वै तो हवा
पाका मात्रा भापकें सूपमे एक सास पॉरिमाणतसक
हो हो सकती हैं । उससे अधिक पाना किसी सी दू्ं+
में हवस नहीं रह सकता । यदि इनाम उतना बाध्य
मौजूद है जितना अधिकनसे लधिक इस तापक्रमपर रहे
सकता हैं तो हम कहले हि कि दवा पामोसे संप्र्त है
कौर छदुला १८० है । इसके विपरीत यदि भापकी
मात्रा केवल उपरोक्त परिमाणकी भावी हैं लो कहेंगे
कि जता ० . हैं। सारिणोम झुंदूला ८५. दै,
इसका भर्ध यह हुआ कि इस तापाहमपर यत्र १५०
इकाई पानीकों ज्ञावपयकता है जो वकि संप्र करें
लो केव ८५ इकाई बाष्प हबामें मौजूद है । इसका
सललब यह हुआ कि हबामे नमी काफी है भौर धि
भाप भपने गी कषद फीलासें ली. हवा उसके पानीकों
बहुत भीड़ नहीं पी सकती । जब भाइमी कम सूखा
रहता है लो भोजन उतना संचिकर प्रतीत सहीं होता ।
इसके विपरीत यदि हबामें दता केवल २०
होती जैसा ग्मि दिने प्राय: हुआ करती है तो
इसको ध्यास बहुल अधिक धु जाती भौर बह चंद
कपष
कष
कर्मी विचार किया है भमा
का पानी पी जाती ।
ब्रायु-दिशा
इसका जान तो साधारणलया सभी रखते हैं कि
हयाका रुख क्या है किन्तु दैनिक सोसिमपर इसका
मी विशेष प्रभाव पहला है। उत्तरी मारकं प्रुषा
हवा प्राय: खुष्क हुआ करती है क्योकि उसे राजपूला मेक!
भारसे भाना पहुंता हैं. किस्तु पुरबसे चलनेवाली इवां
ऐसी हवा कई दिनतक लगातार श् लो. भाप बचा!
अल्त् होती सती इनम आउलां ने होतों ।
सबीधिक और न्यूनतम सापकम
लॉपकरमक बारेमें अभी ऊपर बताया जा भुजा
है कि इससे हताके गम या सर हॉमिका शान होत
है। कई स्थान वो ऐसे हैं जहाँ (दनक्ष अद भम
प्न है नी क, 18. हु हैं है के १६५ £ । हे ५
सोच सके कि नापिक्रम वैदपिरे बरस करता है |
जिले करीब १२ था 1 अजेके तो भधिकसनकधिका
हो जाता है और राना फिर कमन्पेन्कास । इसलिये
मौसिम जाननेके लिये कंबल यहीं जानना प्रचोल भ
होगा किः साधारणतया वहसि तापकम का ही है
बल्कि या भी जानना भावेश हैं कि अधिक
अधिक कौर कम-पे-कम तापम् कथा रही है ।
सारिणीमि यह भौ विसा वता है जिससे सर्वाधिक
लापकरम ५३'० पः, जौर स्थूनलम कक ० कब है ।
इस प्रकार दोनीका अन्तर 1६. कर के है । इससे
पता अछता है कि दिनम तो न्मौ अधिक ह जाती
है किन्तु रातमें काफी पहली हैं । इससे आज मौसम
पर कया प्रभाव पदेंगा. यह सहज में दो अनुमान किया
जा सकता है। इवासें कुंदता पर्याप्त दै नौर चष
क्ेदता ८०० फर पर् ता गईं है | राविये जब नापक्
कम हो जाता है ली इवाकी प्यास मी कम हो जाते! है
भर संभव है कि जिलना वास्य इवासि दिभको मौ
था भीर वाके पिपासा पूण शास्ति नहीं कर सकता
था, भव रालमें उसकी प्यासका शुदानेकें पान भी
अधिक साबित हो । परिणाम यह होगा कि बाध्य
पाली बनकर घास भौर
की बाइम देख प:शेगा। को
यह लावशसयक दरा कि न्थूतलम
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