यजुर्वेद - शतकम | Yajurved-shatakam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बहुत सी चिरकाल पयन्त रने वाली गी 2८
( श्रस्मिन् गोपती ) इस दोप रदित गो रक्तक
हू के पास ( स्वात ) बनी रहें । प्रमु से प्राथना
{ है कि ( यजमानस्य ) यज्ञादि उत्तम कमम करने
4 बाले के ( पन् पादि ) पशुत्ओों की हे इंश्वर !
रक्ता कर |
१ भानायैः- दे परमेश्वर ! भ्रन्न श्रीर वला-
¢ दिकों की प्राप्ति के लिये शापकी उपासना प्रार्थना
करते हुए '्रापका ही हम 'शाश्रय लेते हैं। परम
दयालु प्रभु, जीव को कहते हैं कि, हे जीव ! छुम
है चायुरूप हो | प्राणरूपी वायु से ही तुम्हारा जीवन
४ बन रहा है । तुमको में जगतऊर्ता देव, शुभ कर्मों
# के करने फे लिये प्रेरणा करू, यज्ञादि उत्तम करम
६ कर्तारो फेलियि करे गौरो का संयह करना
{६ श्रावयक हे । भसु से माथैना है कि, हे इंधर!
ए यज्ञादि श्रेष्ठ कम करने वाले यजमान के गी झादि
प्रों दी रता करं ॥१॥ ध
य. ५४44
4244444१ क (९4५
०.५१
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