यजुर्वेद - शतकम | Yajurved-shatakam

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Yajurved-shatakam by स्वामी अच्युतानन्द सरस्वती - Swami Achyutanand Sarswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बहुत सी चिरकाल पयन्त रने वाली गी 2८ ( श्रस्मिन्‌ गोपती ) इस दोप रदित गो रक्तक हू के पास ( स्वात ) बनी रहें । प्रमु से प्राथना { है कि ( यजमानस्य ) यज्ञादि उत्तम कमम करने 4 बाले के ( पन्‌ पादि ) पशुत्ओों की हे इंश्वर ! रक्ता कर | १ भानायैः- दे परमेश्वर ! भ्रन्न श्रीर वला- ¢ दिकों की प्राप्ति के लिये शापकी उपासना प्रार्थना करते हुए '्रापका ही हम 'शाश्रय लेते हैं। परम दयालु प्रभु, जीव को कहते हैं कि, हे जीव ! छुम है चायुरूप हो | प्राणरूपी वायु से ही तुम्हारा जीवन ४ बन रहा है । तुमको में जगतऊर्ता देव, शुभ कर्मों # के करने फे लिये प्रेरणा करू, यज्ञादि उत्तम करम ६ कर्तारो फेलियि करे गौरो का संयह करना {६ श्रावयक हे । भसु से माथैना है कि, हे इंधर! ए यज्ञादि श्रेष्ठ कम करने वाले यजमान के गी झादि प्रों दी रता करं ॥१॥ ध य. ५४44 4244444१ क (९4५ ०.५१




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