गांधीवाद समाजवाद | Gandhivad Samajwad

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Gandhivad   Samajwad by काका कालेकर -Kaka Kalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कास्ट दोनो पक्षों को कुचछ देना चाहते हे, ये उन्हीके हाथ के अनुकूल साधन बन जायें । हमारी इन चर्चाओ के परिणाम- स्वरूप हमारे ये विपक्षी दूरदर्शिता से काम लेकर पहले ही होशियार हो जायें, और अपने संगठन को मजबूत बना ले । क्योकि उनके सामने जनता की नही, अपने ही हित की दृष्टि प्रधान होती है, और उनकी सख्या कम और उस अनुपात में साघन-सामग्री भट्ट होती है, अत' अपने दल को दुढ वना छेना उनके लिए अपेक्षाकृत सरल होता है । इसके सिवा हुकूमत भी उनकी पीठ पर होती है । अतएव नतीजा यही निकल सकता हूँ कि लनेवाले दो पक्षी में से पहले एक का भर फिर दूसरे का दमन शुरू हो जाय । इघर अनजाने ही क्यो न हो, किन्तु जो लोग जोश में आकर बारवार ऐसी शास्त्रीय चर्चा में भाग लेते है, हो सकता है कि इन चर्चाओ के कारण उनके दिल एक दूसरे से खिच जायें और उनमें एक दूसरे के प्रति वैमनस्य पैदा हो जाय । इस कारण जब एक का दमन होता हो, तो दूसरा पक्ष जान बूझकर नहीं, तो अनजाने उस दमन का साधन बन जाय, अथवा साधन न बनने पर भी तटस्थ दशक बनकर ख़डा रहे । इन दोनो अवस्थाओ से देशहित की तो हानि ही हो सकती है । इसका यह भाशय नही कि देश के नानाविघ प्रर्नो के वारे में हमारे विचारों का अधिक-से-अधिक स्पष्ट होता इष्ट नहीं है। असलियत यह हैं कि हमारे देश की जो अनेक समस्‍यायें है, उनमें कुछ ऐसी है, जिनके विषय में तुरन्त ही हमारे विचार स्पष्ट और हमारी निष्ठा दृढ हो जानी चाहिए; कुछ ऐसी समस्याये




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