संत कवि आचार्य श्री जयमल्ल कृतित्व एवं व्यक्तित्व | Acharya Shri Jayamall Krititv Aur Vayaktitv

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Acharya Shri Jayamall Krititv Aur Vayaktitv by उषा बापना - Usha Bapana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन और व्यक्तित्व 4 के छह मास के वाद ही ये श्रमण वन गये । इनकी दीक्षा के उपरान्त इनकी पत्नी ने भी संयम ग्रहण कर लिया । सात दिनों के बाद ही विकरणिया गाँव में इन्होंने बड़ी दीक्षा अंगीकार की” । साधना-काल श्रमण जीवन में प्रवेश करते ही श्री जयमल्ल जीने कठोर साधना आरम्भ क्र दी । साधना में ये वज्च की तरह कठोर थे । इनके विचारों में प्रेम एवं कतव्य का दन नहीं धा । जीवन का एक ही लक्ष्य था आत्मकल्याण । श्रमण- जीवन मे प्रवेण करते ही इनकी एकान्तर तपः की आराधना आरम्भ हो गई। जो १६ वपं तक निर्वाध गति से चलती रही । इन्होंने पाँच तिथियों' के प्रत्याख्यान भी कर लिए । जयमल्लजी अध्यवसायी ही नहीं, अध्ययनणील मी धे । इनको बुद्धि तीव्र एवं स्मृति बड़ी जागरूक थी । दीक्षा लेने के वाद, स्वल्प समय में ही इन्होंने ५ १.अ एक ही प्रहर मे पचि शास्त्र कंठस्थ कर लिए थे । जयमल्ल जी धुन के पक्के थे । इनमे अपने गुरुके प्रति असीम श्रद्धा थी । जव भूधर जी स्वगं सिधारे तब इन्होंने कभी नहीं लेटने की प्रतिज्ञा कीः । ट्स सतत जागरूकता ने इन्ह अन्तर्मुखी वना दिया और इनकी अन्तष्टि ने काव्य का वह्‌ स्वरूप पाया जो ^^स्वान्तःसुखाय” वनकर ही नहीं रहा वरन्‌ “परान्तःसुखाय'' भी वना ! ० नम १. वडी दीक्षा दिन सात में रे लाल, बड़वीखरणीयां हेट ॥श्री॥। -- वहीं, १० १३ २. एक दिने उपवास ओौर एक दिन आहार के कम को एकान्तर-तप कहते हैं । ३. (१) ट्वितीया (२) पंचमी (३) अष्टमी (४) एकादशी (५) चतुर्दशी । ४. (१) कप्पिया (२) कप्पवडंसिया (३) पुप्फिया (४). पुप्फचूलिया (४५) वश्हिदसाओ । ५. पाँच सुत्र तो एक पहर में पढ़कर कण्ठा करियारे । --व्पास्यात नवरत्न माता द 4: ६. जिण दिन थी. जयगल्ल जी किया पोढ़ण का पच्चक्खान । वपं पचास लौ पा्षिगो यो भीपम-ब्रत गुणवान ॥ वि वही, पुन 4 ७. गुनि ग्री हजारी स्मूतति प्रत्य, डाग नरस भानात्‌ का निवस्घ, १३८ |




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