संत कवि आचार्य श्री जयमल्ल कृतित्व एवं व्यक्तित्व | Acharya Shri Jayamall Krititv Aur Vayaktitv
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन और व्यक्तित्व 4
के छह मास के वाद ही ये श्रमण वन गये । इनकी दीक्षा के उपरान्त इनकी
पत्नी ने भी संयम ग्रहण कर लिया । सात दिनों के बाद ही विकरणिया गाँव
में इन्होंने बड़ी दीक्षा अंगीकार की” ।
साधना-काल
श्रमण जीवन में प्रवेश करते ही श्री जयमल्ल जीने कठोर साधना आरम्भ
क्र दी । साधना में ये वज्च की तरह कठोर थे । इनके विचारों में प्रेम एवं
कतव्य का दन नहीं धा । जीवन का एक ही लक्ष्य था आत्मकल्याण । श्रमण-
जीवन मे प्रवेण करते ही इनकी एकान्तर तपः की आराधना आरम्भ हो गई।
जो १६ वपं तक निर्वाध गति से चलती रही । इन्होंने पाँच तिथियों' के
प्रत्याख्यान भी कर लिए ।
जयमल्लजी अध्यवसायी ही नहीं, अध्ययनणील मी धे । इनको बुद्धि तीव्र
एवं स्मृति बड़ी जागरूक थी । दीक्षा लेने के वाद, स्वल्प समय में ही इन्होंने
५ १.अ
एक ही प्रहर मे पचि शास्त्र कंठस्थ कर लिए थे ।
जयमल्ल जी धुन के पक्के थे । इनमे अपने गुरुके प्रति असीम श्रद्धा थी ।
जव भूधर जी स्वगं सिधारे तब इन्होंने कभी नहीं लेटने की प्रतिज्ञा कीः ।
ट्स सतत जागरूकता ने इन्ह अन्तर्मुखी वना दिया और इनकी अन्तष्टि ने
काव्य का वह् स्वरूप पाया जो ^^स्वान्तःसुखाय” वनकर ही नहीं रहा वरन्
“परान्तःसुखाय'' भी वना !
०
नम
१. वडी दीक्षा दिन सात में रे लाल, बड़वीखरणीयां हेट ॥श्री॥।
-- वहीं, १० १३
२. एक दिने उपवास ओौर एक दिन आहार के कम को एकान्तर-तप
कहते हैं ।
३. (१) ट्वितीया (२) पंचमी (३) अष्टमी (४) एकादशी (५) चतुर्दशी ।
४. (१) कप्पिया (२) कप्पवडंसिया (३) पुप्फिया (४). पुप्फचूलिया
(४५) वश्हिदसाओ ।
५. पाँच सुत्र तो एक पहर में पढ़कर कण्ठा करियारे ।
--व्पास्यात नवरत्न माता द 4:
६. जिण दिन थी. जयगल्ल जी किया पोढ़ण का पच्चक्खान ।
वपं पचास लौ पा्षिगो यो भीपम-ब्रत गुणवान ॥
वि वही, पुन 4
७. गुनि ग्री हजारी स्मूतति प्रत्य, डाग नरस भानात् का निवस्घ, १३८ |
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