घड़ी दो घड़ी | Ghadi Do Ghadi

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Ghadi Do Ghadi by डॉ. राजानंद - Dr. Rajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धडी दो घड़ी १७० इसके साथ लाल कोठी की हिस्सेदारी भी आती थी, इद्रावाई हिस्सा- बाँट नहीं कर गई थी । हाँ, जेवर और जमा नकदी को दोनों में बरावर-चरावर कर गई थी । नीना ने पहले ऐसा मकान तय किया, जिसका मोहल्ला पेशे के हिसाव के लायक हो, फिर उसकी खरीद का मोजान बैठाया, जब सारी तैयारी कर ली, तब मीना के सामने योजना 'रखी । मीना समझती सब थी लेकिन उसने अपने की वड़े अजीव से ढंग मे ढाल रखा था । जैसा होता है, हौ । अमर उसकी वहिन भपनी भलाई इसमें देखती है तो उसको मंजूर है। यह भी हो गया । दोनों वहिनें अलग-अलग हो गई । लाल कोटी नीना के पास रही, जिसमे उसका डाक्टर बेटा क्लीनिक चला रहा हैं--काफी शोहरत और आमदनी के साथ । मीना अलग हुई तौ उसे वहुत-सी फिक्र कौ तरफ ध्यान देना पड़ा । नीना के पास थो तो कई तरह के बन्दोवस्तो से छूटी हुई थी, वे भी उसे करने पढें । उसे पेशा भी जारी रखना था, अपनी एहतियात भी रखनी थी भौर जैसाकि इस पेशे में होता है, शरीफ ग्राहकों की भी बनाये रखना था, अपने प्रचारकी को भी और आडी पर उसकी सुरक्षा का सरअंजाम देने वालों को भी । पेशे की माँग गौर उसके स्वभाव कै वीच जव-तव संघर्ष उठता था, पर उसे बह विना ज्यादा भावुक हुए सम्भाल लेती थी । मीना की अन्दरूनी कहानी पाने में मुझे लम्बे अरसे तक इन्तजार करना पडा । सिफं मैने इन्तजार नहीं किया, बल्कि उसके तीस बरस के बेटे रजनीशकात को दोस्त बनाया । समानान्तर दोस्ती--डाक्टर अमलेन्दु से, रजनीशकाते से । अमलेन्दु की दोस्ती तो इतनी खतरे वाली नहीं थी, लेकिन रजनीशकात की दोस्ती में मुझे कुछ बदनामियों भी लेनी पड़ी लेकिन यह वदनामियाँ ओछी थी और मिराधघार थी । बस फके इतना थाँ, जो कि अक्सर आज की सोसायटी का रवैया है-- खुला मारा जाता है, छिपा जीतता है । वास्तव में अलमेन्दु के मुकावले मुझे रजनीशकात ज्यादा दर्द वाला, सच्चाई के वक्‍त सच्चा और किन्ही मायनो में वद से उयादा वदनाम शरीफ लगे । लेकिन फकं तो बुनियादी था। नीना अपने मुद्दे में हर वक्‍त सतर्क, मीना सावधान होकर




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