भगवती आराधना | Bhagawati Aaradhana

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Bhagawati Aaradhana by सदासुख कासलीवाल - Sadasukh Kasliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय कुशोल नष्ट मुनि यथाङ्न्द जाति चष्ट मनि संसक्त १ इन्द्रियासक्त मुनि भ्रष्ट है इन्द्रिव कषाय बिजयी के ज्ञान कार्यकारी है बाद साघुकासा भाचरण शरीर अन्तरंग मलीन वृथा है बाहा प्रवृति दुद्धकर धात्माकी शुद्धता अपेक्षित है अभ्यन्तर शुद्ध के बाह्य क्रिया नियम से शुद्ध होगी बाह्य शुद्धता ग्रम्पन्तर शुद्धता का सूचक है इन्द्ियासक्त व्यक्तियों के दुष्टान्त कोघ कृत दोष मान कृत दोष मायाचार कृत दोष मायाकारी कुम्भकार का दुष्टन्ति लोभ कृते दोष मृगच्वज क! दृष्टान्त कार्तवीर्यं का दृष्टान्त सामान्य इन्द्रिय कपाय जनित दोष प्रौर निराकरण वे उपाय पृष्ठ ४७१ ४७३ ७ ४५७५ ४८१ द ठट ट ॥ ४८५ ` ८६ ४८७ ४९०9 ४९२ ४६३ ठे ब ६५ जहा (च ) | विषय ¡ क्रोध कृत दोष जीतने का उपाय ' मानकृत दोष ` मायाचारक़ृत दोष „+, लोभ कृत दोष व , निद्वा विजय का उपाय | तप महिमा शरीर सुख मे ध्रासक्त के तप में दोष ` श्रालसीकेतपमे दोप ' तपद्चरण के गुण | निर्यायकाचार्य के उपदेश से सस्तर | प्राप्त साधु प्रसन्न होता है ¦ उपदेश सुन, सस्तर से उठ, गूरु वन्दना भादि किस प्रकार करे ३४ धारणा भ्रधिकार ' क्षपक के देने योग्य म्माहार ¡ क्षपक के वेदन! होने पर प्रन्य साधु ' का कतव्य ३५ कवच प्रधिकार , शिथिलता दूर करने हेनु मीठे वचन द्वारा साघु को संबोघ ना ! साधु को चलायमान नही होना , विभिन्न परिषह सहने वाले दृष्टान्त , नरक मे उष्ण वेदना । नरकं मे शीन वेदना नरक के अन्यद पृष्ठ ५११ ५०३ क्ट ४०६ ५०९६ ५०९ ५१०. ५१० ५११ ५१६. ५१७ , ५१६ ५२५० ५२४ ५२५ ५२९५७ ५३१ ५३८ ५२३८ ५२८ | | | | ्‌ | विषय ४) तिर्थवगति के दुख ५४४ देव मनुष्यगति के दु ख ५४६ कर्मोदय जनित वेदना को कोई दूर नही कर सकता ५५२ पंयमी को मरण मला पर संयम नाश ठीक नही ५५३ कर्म सबसे बलवान है ५५४ प्रसात में क्लेरित होना उचित नहीं ५५५ ब्त भंग पाप है ५५७ प्रत्याख्यान का भग मरण से बुरा हे. ५५८ ग्राहार की लपटता सब पापों को कराती है. ५४६ प्राहार लम्पटी के दृष्टान्त ५९२ श्राहार लम्पटी के क्लेश ५६५ गरीर ममत्व त्याग का उपदेश ५९६९७ ३७ समता भधिकार ५७१ इष्टानिष्ट में राग ढ् ष नहीं करना ५७२ समस्त पदार्थों में समभ।व रखना ५७३ साध की मत्री कारुण्य भूदिता एव उपेक्षा भावना का स्वरूप ५७४ ३७ ध्यान प्रचिक्ार ५७५ क्षपक शुभ ध्यान करतार, प्रगुमनही » र्त घ्यानके मेद ५७६ अनिष्ट षयोगज प्रार्तध्यान | इष्ट-वियोगज ग्रार्तध्यान ५.०५




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