अंतराल महासमर - 5 | Antral-mahasamar-5
 श्रेणी : कहानियाँ / Stories, साहित्य / Literature

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
25.6 MB
                  कुल पष्ठ :  
370
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कि परिवार की स्त्रियाँ और बच्चे कहाँ रहेंगे। वन में हम कहीं ठिकाना कर लें  फिर शांति से विचार-विमर्श कर लेंगे कि किसकी व्यवस्था कहाँ करनी है ।   हमें हस्तिनापुर से तो तत्काल ही निकल. पड़ना चाहिए मध्यम    अर्जुन बोला   धार्तराष्ट्रों की इस नगरी में हम जितनी देर अधिक ठहरेंगे  उतना ही अधिक संताप झेलेंगे ।  ठीक है।  युधिष्ठिर बोले   माता  काका और काकी से विदा लो और यहाँ से प्रस्थान करो | थ 2 अपनी अन्यमनस्फता और आत्मलीनता में भी युधिष्ठिर की चेतना अपने आसपास की गतिविधि से असावधान नहीं थी । उन्होंने अनुभव किया कि वेग धम गया है और गति  स्थिति में परिणत हो गई है। कदाचित् भीम ने यहाँ रुकने का निश्चय किया था और वैसा ही संकेत कर दिया था। उन्होंने दृष्टि उठाई जिस स्थान पर वे रुके थे  वह गंगा का तट धा। चारों ओर सुंदर वृक्ष थे । गंगा की वेला अपने-आप में इतनी मनोरम थी कि यह मानना ही पड़ता था कि भीम ने रुकने के लिए बहुत ही अच्छे स्थान का चुनाव किया था ।  किंतु यह स्थान तो प्रमाणकोटि था । कौरवों का बहुत प्रिय क्रीड़ास्थल   बाल्यावस्था में यहीं दुर्योधन ने भीम के प्राण लेने का षड्यंत्र  रचा था । तो फिर भीम ने यहीं रुकने की व्यवस्था क्यों की है ? क्या वे लोग कुछ और दूर नहीं चल सकते थे ? वन में कहीं भी जा ठहरते  जहाँ  सुंदर प्रकृति उनके आहत हृदय पर कोई सुखद लेप लगाती ।  जब सबका मन क्षोभ से विक्षिप्त हो रहा हो  तब एक दुःखद अनुभव की स्मृति संजोए  इस स्थान पर  दोबारा आ ठहरने का क्या प्रयोजन था ? क्या भीम को कुछ भी स्मरण नहीं रहता ?  या स्मरण तो रहता है  कितु स्मृतियाँ उसके मन में पीड़ा नहीं जगातीं ? दंश का अनुभव नहीं होता उसे ? क्या हो गया है  भीम की संवेदनशीलता को ? .. सहसा युधिष्ठिर का मन कुछ इस प्रकार सहम कर खड़ा हो गया  जैसे कोई धावक  यह अनुभव कर  अचकचाकर खड़ा हो जाए कि वह तो अब तक गंतव्य की विपरीत दिशा में दौड़ता रहा है भीम ने कदाचित् जान-बूझ्क्र उन्हें प्रमाणकोटि में ला ठहराया था  ताकि वह .युधिष्ठिर को स्मरण दिला सके कि उनके शैशव से ही -दुर्योधन उनके प्राण-हरण  धन-हरण  राज्य-हरण इशयादिं के षड्यंत्र करता रहा है दूत-क्रीड़ा  राज्य-हरण तथा द्रौपदी के अपमान कीं घटनाएँ 14 / महासमर-5
 
					
 
					
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